राजनीति में आना, चुनाव जीतना और फिर शासन की बागडोर संभालना आसान है पर राज करना कठिन है. एक तरफ घिसेपिटे मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में ऐसा ही महसूस कर रहे हैं तो दूसरी तरफ दिल्ली में नईनवेली आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल. मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव ने अपने पुश्तैनी गांव सैफई में एक महारंगारंग प्रोग्राम किया जबकि अरविंद केजरीवाल ने सचिवालय के सामने शिकायत दरबार लगाया. दोनों में वाहवाही की जगह थूथू हुई.

अखिलेश यादव ने जोश में आ कर सरकार के करोड़ों रुपए बरबाद कर के सलमान खान, माधुरी दीक्षित, कपिल शर्मा, आलिया भट्ट को नाचने के लिए बुला लिया और जहां मंच पर नाचगाना हुआ, उसी के पीछे समाजवादी पार्टी के युवाओं ने पुलिस से जम कर कुरसीतोड़ नाच कियाऔर नारों के गाने लगाए. टीवी चैनलों ने जम कर खिंचाई की कि जब राज्य में लोग राहत शिविरों में ठंड में ठिठुर रहे हैं तो इस नाचगाने का क्या औचित्य? अखिलेश यादव कितना ही कहते रहें कि यह परंपरा का सवाल है, बस. 1 करोड़ रुपए खर्च हुए. कोई इसे मानने को तैयार नहीं.

इधर, अरविंद केजरीवाल के जनता दरबार में भी सैफई की तरह भीड़ जुटी पर यह सरकारी अमले से सताए लोगों की थी जिन्हें यह भरोसा है कि अब मुख्यमंत्री उन का है, उन की सुनेगा. अरविंद केजरीवाल ने सोचा था कि लोग आएंगे, कतार में खड़े होंगे, एकएक कर के अफसरों की खिंचाई होगी. पर ऐसा न हुआ. लोगों ने एकदूसरे को खींचना शुरू कर दिया. भगदड़ सी मच गई. कुचले जाने का डर पैदा हो गया. आखिरकार, दरबार बरबाद हो गया. दोनों मुख्यमंत्री अब खिसिया रहे हैं, एक हठी में, रोब में, गुस्से में तो दूसरा एक अच्छा काम न कर पाने के मलाल में.

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