राहुल गांधी कोई युवा तो नहीं रह गए हैं, पर जब राजनीति में जगह ही 65-70 साल वालों को मिले, तो राहुल को 47 की आयु में पुरानी पार्टी की बागड़ोर संभाल लेना थोड़ा सुकून देने वाला है. भाजपा व दूसरे लोग इसे विरासत की राजनीति कहते हैं. पर यह आरोप आधा ही सही है. अखिलेश यादव, उद्घव ठाकरे, विजय गोयल, स्टालिन जैसे बीसियों ऐसे युवा नेता हैं, जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है, पर उन में से हरेक को अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है.

1965 में इंदिरा गांधी को लालबहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद मिल गया, पर असली शक्ति भारी संघर्ष के बाद ही मिली. सोनिया गांधी को 1998 में सीताराम केसरी से लड़ कर कांग्रेस का अध्यक्ष पद मिला. राहुल गांधी को अध्यक्ष पद न मिले और कांग्रेस किसी नेता के अभाव में छिन्नभिन्न हो जाए, इस की भरपूर कोशिश भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी को पप्पू कह कर मजाक उड़ा कर की.

राहुल गांधी ने हिचकिचाहट के बाद खुद को अध्यक्ष पद के लिए तैयार किया. गुजरात चुनावों में (परिणाम चाहे जो भी हों) उन्होंने कोई कसर न छोड़ी और बीमार होती मां सोनिया गांधी के बिना अकेले नरेंद्र मोदी के पक्के गढ़ पर हमला ही नहीं किया, उस की चूलें हिला दीं. चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सकते में डाल दिया. नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी के कारण उस जीएसटी कानून में बदलाव लाने पड़े, जिसे वे वेद वाक्य मान कर चल रहे थे. एक युवा ने पंडितों के बलदूते चल रही वृद्घों की पार्टी को हिला कर रख दिया.

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