तमिलनाडु में मुख्यमंत्री की कुरसी के लिए अच्छा तमाशा चला और शायद यह अभी कई महीने चलेगा. महारानी जयराम जयललिता की मृत्यु की खबर सुनते ही कुछ के सपने जाग गए और उन में से एक शशिकला हैं जो वर्षों से अविवाहित जयललिता के साथ साए की तरह रह रही थीं. जयललिता की मृत्यु के बाद उन का सारा पैसा और पार्टी के विधायकों की पोलपट्टी शशिकला के हाथों में आ गई और वे मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगीं. वे मुख्यमंत्री बन जातीं पर फिर उन पर जयललिता के साथ 65 करोड़ रुपए की बेईमानी के मामले में चल रहे मुकदमे की सुप्रीम कोर्ट में आखिरी फैसले की तारीख आ गई. इसलिए 3 बार कठपुतली बने मुख्यमंत्री पन्नीर सेल्वम ने विद्रोह करना शुरू कर दिया था. अब जब सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला को 4 साल की सजा और 10 साल तक चुनाव न लड़ने की शर्त लगा दी है, पन्नीर सेल्वम के इरादे कुछ और हो गए हैं. वे अपना दावा ठोकने लगे हैं जबकि शशिकला के समर्थक अपना.

अम्मा और चिनम्मा के नाम पर चल रही राजनीतिक ड्रामेबाजी देश के लोकतंत्र की असल पोल खोलती है. हमारा चुनाव आयोग खासे निष्पक्ष चुनाव तो करा लेता है पर हमारी जनता अभी भी नहीं जानती कि शासकों के चुनाव में कैसी सावधानी बरतनी चाहिए कि केवल कर्मठ, सेवाभावी, जनहित के बारे में सोचने वाले नेता सत्ता में आएं. लगभग हर राज्य में चुनावों से जो जीतता है वह क.ालिखपुता होता है जिस का उद्देश्य जनता की समस्याएं दूर करना नहीं, अपने लिए व्यक्तिगत साम्राज्य खड़ा करना होता है. शशिकला को राजनीति का कोई अनुभव नहीं, चाहे जयललिता की सहायिका होने के कारण उन्हें बहुतकुछ मालूम हो. जयललिता खुद भी दिखावटी गुडि़या ज्यादा थीं. उन्हें तमिलनाडु की चिंता हो, ऐसा नहीं दिखा. यह तो तमिलनाडु की जनता की अपनी मेहनत थी कि उस का राज्य दूसरों से बेहतर है वरना सरकार और नेता तो वहां भी निकम्मे ही हैं. उस पर यदि सरकार नौसिखियों के हाथों में आ जाए तो यह खतरे की घंटी ही होगी.

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