चाहे कोई भी खर्च कर बनाए, सड़कें पूरे समाज की सामूहिक धरोहर होती हैं क्योंकि ये ही समाज को बनाती हैं और एक को दूसरे से जोड़ती हैं. सरकारें लगातार निजी सड़कों की अनुमति दे रही हैं जिन में सस्ते दामों पर किसानों से जमीनें कब्जाई जाती हैं और फिर विकास के नाम पर उन्हें प्राइवेट कंपनियों को सौंप दिया जाता है ताकि वे टोल लगा कर पैसा कमा सकें. सड़कें असल में सरकार की मूलभूत सुविधाओं में गिनी जानी चाहिए जो जरूरत के हिसाब से बनें, उन का सही रखरखाव हो और हर कोई उन का केवल आनेजाने के लिए इस्तेमाल करे पर वे किसी की बपौती न बन जाएं. अच्छी सड़कों को ठेकों पर दे कर सरकार ने शिक्षा, पानी की तरह सड़कों को भी पांचसितारा बनाना शुरू कर दिया है जिस पर केवल अमीर लोग लंबी गाडि़यों में दौड़ सकें. प्राइवेट सड़कों का व्यापार चलता रहे, इस के लिए इन के ठेकेदार पुरानी सरकारी, या कहिए सामाजिक सड़कों पर ध्यान न देने के लिए अफसरों की जेबें गरम करते रहते हैं. उन पर कब्जे हो जाते हैं, मंदिरमसजिद बन जाते हैं, वे टूटती रहती हैं, चौराहों पर जाम लगे रहते हैं. ये सब कराया जाता है ताकि महंगी सड़कों पर ज्यादा से ज्यादा ट्रैफिक जाता रहे.

अब सरकार 1 लाख करोड़ रुपए में देश की 5 हजार किलोमीटर सड़कें विदेशियों को बेच रही है. स्वदेशी जागरण के बिल्ले वाली भगवाई सरकार को क्या लूट को बांटने वाले देश में नहीं मिले कि जो विदेशियों को सड़कें दी जा रही हैं, जैसा कि पहले के राजाओं ने सोने के लालच में विदेशियों को महसूल वसूलने की इजाजत दी थी और आखिर में अपना पूरा साम्राज्य खो दिया. आश्चर्य की बात यह है कि यातायात मंत्री नितिन गडकरी, जो सड़कों पर टोल प्लाजा हटाने की मांग कर रहे थे, इस निर्णय से गद्गद हो रहे हैं. ये सड़कें आम आदमियों की नहीं रह जाएंगी. उन पर खास लोग चलेंगे मोटा टोल टैक्स दे कर क्योंकि विदेशी अगर 1 लाख करोड़ रुपए लगाएंगे तो 5 लाख करोड़ रुपए कमाएंगे. देश विकास तो चाहता है पर खुद को बेच कर नहीं. अगर कल को कोई कंपनी कहे कि वह सस्ते में सरकार चला सकती है तो क्या हम मान जाएंगे, यह न भूलें कि 1900 से पहले देश की प्रगति ऐसी कम नहीं थी कि सोचा जाए. पर फिर भी गांधी ने कहा था कि हम चाहे सही प्रबंध न कर पाएं, सरकार हमारी ही हो. यही सड़कों के साथ हो. हम खराब सड़कों को ठीक करें पर सड़कें सामाजिक रहें, सब की संपत्ति रहें और हम अमीरगरीब के चक्कर में न पड़ें. 

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