सभी दलों ने समयसमय पर गरीबी हटाने, समाजवाद लाने, मंडल आयोग को लागू करने, दलितों के नेता अंबेडकर को अपनाने के टोटके अपनाए, अब वे एकएक कर के अपनी दुकानों में  अंधविश्वासों के पुतले बेचने की तैयारी कर रहे हैं. कांगे्रस ने कवायद शुरू कर दी है कि क्या उसे हिंदूविरोधी माना जा रहा है. फिलहाल करुणानिधि को छोड़ कर सभी पार्टियों के नेता नियमित तौर पर सार्वजनिक रूप से धर्म को बेचने वालों को शाबाशी देते नजर आ रहे हैं. यह हमेशा होता रहा है, हर देश में होता रहा है. राजनीतिक दल अब जनता को अपनी मरजी से तय दिशा पर ले जाने के स्थान पर जनता की सहीगलत मांगों पर अपनी नीतियां बताने लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी की कट्टर सोच ने उसे भारी जीत दिलाई, इस के चलते हर पार्टी अब अपना स्वरूप बदलने में लग गई है.

धर्मों का पूरे विश्व में डंका फिर से जोर से बजने लगा है. इस का बड़ा कारण है, आमिर खान की फिल्म ‘पीके’  के अनुसार, धर्म के दुकानदारों, मैनेजरों और असल में धोखेबाज दलालों द्वारा आधुनिक प्रचारतंत्र को अपनाना. आजकल इंटरनैट से धर्म का धुआंधार प्रचार हो रहा है. ईद हो या क्रिसमस, दीवाली हो या होली, धर्म के धरातल बनाने एसएमएस, मेल, फोटो धड़ाधड़ मोबाइलों पर पहुंचने लगते हैं. धर्म का इतना प्रचार हो रहा है कि लोगों में एड्स या प्रदूषण का डर कम, ईश्वर के नाराज होने का ज्यादा है.

आज लोगों की मानसिकता बदलना राजनीतिक दलों के बस का नहीं रह गया. दल सत्तालोलुप हो गए हैं. समाज सुधारों से उन का वास्ता न के बराबर है. वे अहंकारी, निर्दयी, पुरातनपंथी और धोखेबाज महंतों, मुल्लाओं, पादरियों को अपनी चलाने की छूट ही नहीं देते, उन्हें संरक्षण देते हैं, जमीनें देते हैं, हर तरह से जनता को बरगलाने व लूटने का अवसर भी देते हैं. एक तरह से धर्म के दलालों ने परोक्ष रूप से हर दल पर कब्जा कर रखा है. कांगे्रस, ऐसे में, हिंदूवादी रास्ते पर लौटना शुरू कर दे तो बड़ी बात नहीं. यह नहीं भूलना चाहिए कि 1947 के कांगे्रसी आज के भाजपाइयों से ज्यादा धर्मभीरु थे. 1947 से ही कांगे्रसी नेताओं ने मंदिरों का निर्माण शुरू करा दिया था. हिंदू विवाह कानून भी एक सुबूत है कि उस में परंपराओं को कानूनी मान्यता कांग्रेस ने दिलवाई थी. अब जब भाजपा जीत पर जीत हासिल कर रही है तो समझो कि तिरुपतियों, दरगाहशरीफों, गुरुद्वारों की बन आई. कांगे्रस भी अब धर्म की गोटियां फिट करने में पीछे नहीं रहेगी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...