भारतीय जनता पार्टी के नेता महिलाओं को क्या समझते हैं, यह जानना कठिन नहीं है. हमारे सारे धर्मग्रंथ औरत को पापों की गठरी मानते हैं और भगवा धर्म यह आदेश देता है कि उस को मानने वाले इस धारणा को मानें ही नहीं लागू भी करें. इसीलिए जब भारतीय जनता पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रमुख दिलीप घोष ने कहा कि वहां के प्रसिद्ध जाधवपुर विश्वविद्यालय की युवतियों का स्तर निम्न है, उन्हें शर्म नहीं है, वे हर समय युवकों का साथ पाने के लिए उतावली रहती हैं, तो कुछ नया नहीं कहा. भारतीय जनता पार्टी न केवल राज करना चाहती है, बल्कि पौराणिक युग की वापसी भी चाहती है, जिस में, ‘शूद्र, ढोल, चमार और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी’ का सिद्धांत चलता हो.

जाधवपुर विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय भगवाइयों को खटक रहे हैं, क्योंकि यहां ऐसी पौध पनपती है जो उदार है, समझदार है और पोंगापंथी का खुला विरोध करती है. यहां चूंकि अमीरगरीब का भेद कम है, जाति और वर्ण के भेद केवल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों तक सीमित रहते हैं. ऊंची जातियों या उन के अंधभक्तों को समझ नहीं आता कि आखिर कैसे जाति के बंधनों से दूर हो कर साथसाथ रहा जा सकता है.

इन विश्वविद्यालयों में जो विवाद खड़े हो रहे हैं, वे नीतियों पर कम जाति व्यवस्था के कारण ज्यादा हैं. ऊंची जातियों के युवकयुवतियों को समझ नहीं आता कि पिछड़ी व दलित जातियों के बीच ये आपसी समझौते कैसे हो रहे हैं कि वे धर्म की लकीर पीटने की जगह नए उन्मुक्त धर्मविहीन समाज और शासन की मांग कर रहे हैं. इन विश्वविद्यालयों में राजनीति की जड़ में जाति के प्रति विद्रोह है, क्योंकि विद्रोही उन जातियों के हैं जिन्हें आज भी ऊंची जातियां स्लमों में धकेल रही हैं. उन के साथ होस्टल, ढाबे शेयर करने पड़ें, यह ऊंची जातियों के छात्रों को स्वीकार नहीं होता. यह इन खास विश्वविद्यालयों में ही नहीं हो रहा है, बल्कि यह उन सब विश्वविद्यालयों में हो रहा है जहां सरकारी सहायता के कारण फीस न के बराबर है और भारी छात्रवृत्ति मिल रही है. हजारों पिछड़ी व दलित जातियों के छात्र इतने अच्छे नंबर ले आते हैं कि वे गरीब या अमीर ऊंची जातियों के युवाओं को पीछे धकेल सकें.

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