भारत माता की जय न बोलने वाले को देशद्रोही कहा जा सकता है, पर उसे नहीं जो खुलेआम कहती फिरे कि भारत को उन नागरिकों से मुक्त कराना है, जो तिलक नहीं लगाते, मंदिरों को चंदा नहीं देते, भगवा पहनने वालों के पैरों की धूल नहीं चाटते. यह किस तरह का देश है जो आज भी 15वीं सदी में जीने की कोशिश कर रहा है जब न बिजली थी, न किताबें थीं, न इतिहास था? थीं तो सिर्फ गपों से भरी धर्मगुरुओं की बेसिरपैर की बात साध्वी प्राची ने देश को मुसलिम मुक्त बनाने की बात खुलेआम कह दी और उस पर भड़काऊ भाषण देने का कोई मुकदमा नहीं चला. गाय की हत्या का नाम लेने वालों को मारने का इस देश में लाइसैंस है, पर जिंदा नागरिकों का सफाया करने की वकालत करने वालों को हार पहनाए जा रहे हैं. यह कौन सा न्याय है? यह कैसा कानून है?

देश को आज विकास की जरूरत है, पर वही पार्टी, जो विकास का नारा जापती है, देश को धर्म, जाति, उपजाति के नाम पर बांटने की खुली न सही छिपी बातें कर ले, तो कोई कुछ नहीं कहता. आज धर्म पर टिकी राजनीति ने देश के शहरों को ही नहीं, बल्कि गांवों तक को बांट दिया है. हर छोटीमोटी जाति अपना संगठन बना कर झंडा लहराती घूम रही है और कभी आरक्षण मांगती है, कभी अपने बनावटी देवता के मंदिर के लिए जगह मांगती है.इन्हीं में से एक रामवृक्ष को कोई और देवता याद नहीं आया तो उस ने सुभाषचंद्र बोस को नेता मान कर मथुरा की 280 एकड़ जमीन पर कब्जा कर शहर बसा डाला और उस की इतनी हिम्मत हो गई कि पुलिस से मोरचा ले लिया. ऐसा ही पहले एक रामपाल  ने हरियाणा में किया था.

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