लच्छेदार भाषा का प्रयोग करना हिंदू धर्म के प्रचारकों का विशेष गुण है और उन के सारे प्रवचनों का अंत दानदक्षिणा पर होता है. भोपाल के एक वाचक सुरेंद्र बिहारी गोस्वामी ने औरतों की एक भीड़ में ज्ञान दिया कि व्यक्तित्व में निखार तब आता है जब भक्ति की लहरें हिलोरे लेने लगें वरना व्यक्तित्व का सागर थमा रहता है. यह कैसा तर्क है? हमारा व्यक्तित्व हमारी बोलचाल, हमारी बुद्धि, हमारे व्यवहार, हमारे गुणों पर निर्भर है. भक्ति और वह भी राधा व उस की सहेलियों जैसी, जो कृष्ण की बांसुरी की तान सुन कर सब काम छोड़ कर उसे निहारने के लिए दौड़ पड़ें, किस काम की? भक्ति का प्रपंच तो तथाकथित भगवान के बिचौलियों को खुश करने के लिए रचा जाता है, इसीलिए कथावाचक भक्ति को परमात्मा से और गुरु को परमात्मा का रूप सिद्ध करने में लगे रहते हैं.

शब्दजाल का कमाल देखिए कि कथावाचक चेतन और जड़ता का अंतर ही समाप्त कर देते हैं. चेतन का अर्थ है जो चेता हुआ है और जब वह चेता हुआ है तो जड़ कैसे हुआ? जड़ कोई कैसे हो सकता है? जड़ होगा तो कथावाचक की कथा सुनने के लिए कैसे आएगा? कथा में जो लोग मौजूद होते हैं, उन में संभ्रांत व पैसे वाले भी होते हैं. वे जड़ कैसे हो सकते हैं कि भक्ति का रस उन्हें चेतन अवस्था में ले आए. आत्मा और परमात्मा का नाम इस तरह की कथाओं में खूब उछाला जाता है. बड़े विश्वास से कह दिया जाता है कि भक्ति से आत्मा, परमात्मा से मिल जाती है. अगर उन कथावाचकों के अनुसार परमात्मा कणकण में मौजूद है तो किस की आत्मा में वह नहीं है कि वह कथा सुन कर परमात्मा के निकट आए? यह शब्दजाल भ्रम फैलाने के लिए है. इस का उद्देश्य है कि परमात्मा के एजेंट गुरु को परमात्मा मानो, उसे दान दो, उस की तनमनधन से सेवा करो. मजेदार बात यह है कि मंदिरों, जहां इस प्रकार के ज्ञान का प्रवाह होता है, जहां परमात्मा विराजे रहते हैं, जहां सद्ज्ञान बंटता है, जहां सदाचार का पाठ पढ़ाया जाता है, उन के विवाद उन अदालतों से निबटवाए जाते हैं जहां चोर, डाकू, रिश्वतखोर, बलात्कारी, हत्यारे, बेईमान, ठग आते हैं. मध्य प्रदेश के मुलताई के जगदीश मंदिर का एक विवाद 2007 से चल रहा है. वहां मूर्तियों के आगे पेशियां नहीं होतीं, अदालत में होती हैं. विवाद मंदिर की जमीन को ले कर है पर ज्ञान से सराबोर गुरु और उन के समकक्ष परमात्मा फैसला नहीं कर पा रहे, आम आदमी से जज बने न्यायाधीश कर रहे हैं. क्या यही शक्ति है भक्ति की?

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