सरकार का उत्साह और उन के ऊंचे प्लान खटाई में पड़ गए हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार की 2 रेलें मोदी के प्रिय भगवा राज्य उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक दुर्घटनाग्रस्त हो गईं. एक में 23 लोगों की मौतें हुईं, दूसरी में 74 की और कई सौ घायल हुए. बुलैट ट्रेनों में चीन का मुकाबला करने का दम भरने वाली सरकार को इन घटनाओं से गहरा धक्का लगा है.

रेलयात्रा के टिकट महंगे हो गए हैं और यात्रियों को ईटिकट, आधारकार्ड, पैनकार्ड, परिचयपत्र व अन्य कठिनाइयां झेलते हुए टिकट मिलता है. रेलों के प्लेटफौर्म लोगों से भरे रहते हैं.

रेलवे का प्रबंध इस तरह ढीला है कि कुछ स्टेशनों को छोड़ कर ज्यादातर रेलवेस्टेशनों के बाहर अस्तव्यस्त माहौल बना रहता है. पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने 3 वर्षों में रेलवे का कायापलट करने का वादा किया था, पर रेलों के डब्बे ही पलट रहे हैं.

यह, असल में, नई तकनीक का गलत उपयोग है. हम मूलतया अभी भी पुराने ढर्रे पर चलने वाले लोग हैं. सरकार 2000 साल पुरानी सोच को थोपने की फिराक में है बजाय नई वैज्ञानिक, तार्किक और व्यावहारिक सोच लाने के. रेलवेस्टेशनों पर पूजापाठ बढ़ गया है पर उस से दुर्घटनाएं थोड़े कम होती हैं.

यूरोप दशकों से तेज ट्रेनें चला रहा है और चीन अपने सारे शहरों को बुलैट ट्रेनों से जोड़ रहा है जबकि हमारे यहां शुभमुहूर्तों का ही इंतजार किया जा रहा है.

सुरेश प्रभु अच्छे रेल मंत्री थे या नहीं, यह साबित नहीं हो सकता क्योंकि दुर्घटनाएं तो वर्षों की लापरवाही का नतीजा हैं पर यदि वर्षों पहले बनी योजनाओं का लाभ उठा कर आप को फीते काटने हैं तो शवों को कफन पहनाने के जिम्मेदार भी आप ही होंगे.

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