नरेंद्र मोदी सरकार का मेक इन इंडिया लगातार बेमतलब सा दिख रहा है. देश की रक्षा के लिए सरकार ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू हवाईजहाजों को खरीदने का फैसला किया है. यानी हम अभी भी इस तरह के हवाईजहाज खुद नहीं बना सकते, चाहे कितने ही दावे कर लें. इस सौदे में 16 सौ करोड़ रुपए का एक हवाईजहाज होगा. 36 हवाईजहाजों से भारत जैसे देश का कुछ बनताबिगड़ता नहीं, यह पक्का है. हां, पाकिस्तान, जिसे हम अपना अकेला दुश्मन मानते हैं, उसी के मुकाबले के लड़ाकू हवाईजहाज खरीदेगा.

सवाल तो यह उठना चाहिए कि जब अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस अपनेआप ये हवाईजहाज बना सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? हम से तो अपनी रोज की जरूरत के मोबाइल भी नहीं बन रहे. हम चीन जैसे देश से 46.08 खरब रुपए का सामान खरीदते हैं और उसे बस 53 अरब रुपए का सामान बेच पाते हैं, जिस में ज्यादातर कच्चा माल है  राफेल जैसे हवाईजहाज खरीदने का फैसला नरेंद्र मोदी सरकार को करना पड़ा, यह और अफसोस की बात है क्योंकि उम्मीद थी कि 2014 की उन की जीत के बाद देश तेजी से आगे बढ़ेगा और हम एक गरीब देश के बिल्ले से छुटकारा पा जाएंगे. पर यहां तो हमें ताबड़तोड़ रक्षा के हथियार भी खरीदने पड़ रहे हैं और रोजमर्रा के लिए जरूरी मोबाइल भी. हमारे बाजार विदेशी नामों से भरे हैं. सड़कों पर विदेशी नामों वाली गाडि़यां दौड़ रही हैं. घरों में टैलीविजन, एयरकंडीशनर, कंप्यूटर, कपड़े, कैमरे सभी तो विदेशी तकनीक पर बने हैं. ऐसे में रक्षा के लिए भी यदि हर चीज विदेशी होगी, तो हम कहां से अपना सिर उठा सकेंगे. बच्चे पैदा करना ही हमारा अपना काम रह गया है. उस में भी दवाइयां अब विदेशी नामों की हैं. विदेशी मशीनों से अस्पताल भरे हैं. हम किस तरह के लोग हैं, जो अपना काम खुद नहीं कर पा रहे. मजेदार बात यह है कि इस तरह के सवाल पूछे जाएं, तो जवाब दिया जाता है कि 18वीं सदी का सामान इस्तेमाल करो. खादी पहनो, बैलगाड़ी पर चलो.

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