तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री ने पी वी सिंधु को बेहतर कोच का आश्वासन दे कर आफत मोल ले ली. ओलिंपिक बैडमिंटन में रजत पदक पाने वाली सिंधु गोपीचंद के प्रशिक्षण में खेलती है और गोपीचंद लगातार रियो में उस के साथ, बिलकुल भावहीन पर सतर्क हो कर, स्तंभ की तरह खड़े रहे. कुछ देना है, इस तर्ज पर उपमुख्यमंत्री मोहम्मद महमूद अली बोल पड़े कि सिंधु को बेहतर सुविधाएं और बेहतर कोच दिया जाएगा. अभी एक सप्ताह हुआ भी नहीं कि नेता लोग अपरोक्ष रूप से गोपीचंद को नाकाम साबित करने में जुट गए ताकि वाहवाही वे खुद लूट सकें. यह हमारी पुरानी आदत है कि हम काम करने वाले को नकारते हैं, सिंधु को धन्यवाद देना है तो उन की बात मानो, श्रेय मत लो.

हरियाणा में एक सभा में साक्षी मलिक का स्वागत किया गया लेकिन मंच पर नेता ही बोलते रहे, मानो वे ही कांस्य पदक जीत कर लाते रहे हैं. काम करने वालों के प्रति इस प्रकार का भेदभाव आम है क्योंकि इस देश में चलती तो बोलने वालों की है, काम करने वालों की नहीं. सिंधु व साक्षी ने देश की लाज रखी है वरना 20 पदक लाने का वादा करने वालों को मुंह दिखाने की जगह न मिलती. उस पर भी वादों की बिरादरी किसी तरह इन खिलाडि़यों की प्राप्ति को अपना समझ रही है क्योंकि उन के रहनेखानेपीने, आनेजाने का खर्च तो उसी ने ही दिया है न. खेलों की राजनीति बहुत ही बुरी है और हजारों प्रतिभाएं इसीलिए हार जाती हैं. मैदान से ज्यादा एक खिलाड़ी को अपना समय दफ्तरों में भत्तों के भुगतान और टूर्नामैंटों में आनेजाने की अनुमतियों के लिए लगाना पड़ता है. खिलाडि़यों को उन की प्रतिभा के लिए यहां कोई स्थान नहीं दिया जाता. खेल हमारे समाज में भी रचेबसे हैं पर वे अभी तक दंगल, कबड्डी या पतंग जैसे ही हैं. क्रिकेट साहिबी खेल है. पी वी सिंधु और साक्षी मलिक ने देश का जो मान रखा है, वह हम थोड़े दिन याद रखेंगे, फिर उन्हें किताबों और फाइलों में दफन कर देंगे. वे अगर दरदर भटकने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं. इतिहास तो यही कहता है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...