सुबह होती है, शाम होती है, जिंदगी यों ही बरबाद होती है. दुनिया के अधिकांश लोगों की जिंदगी यों ही दो वक्त के खाने, सिर पर छत का इंतजाम, बच्चों को पैदा व उन्हें बड़ा करने में बीत जाती है जबकि दुनिया में करोड़ों ऐसे हैं जिन्हें दूसरों से कुछ सहायता चाहिए ताकि वे अपने जीवन में वे खुशियां, चाहे थोड़ी सी ही, ला सकें जिन्हें आम सभ्य शिक्षित नागरिक प्रकृति की देन समझता है. हर वह जना जो हर सुबह यह सोचता है कि दिनभर सिवा अपने उबाऊ काम के क्या करे जो उसे जीवन का कुछ ध्येय दे सके, वह उन से सीखे जिन्होंने अपने साथ दूसरों के लिए कुछ किया.

समाजसेवा असल में खुद की सेवा है. आप अपने शरीर, अपनी बुद्धि, अपनी मेहनत, अपने पैसे से जब किसी का कोई अधूरा काम पूरा करते हैं तो खुद को बहुत कुछ सिखाते हैं. आप एक अंधे को रास्ता पार कराते हैं तो ही पता चलता है कि सड़क के ट्रैफिक से कैसे निबटा जाए. जब आप बीच रास्ते में खडे़ किसी और की गाड़ी का टायर बदलने में उस की सहायता करते हैं तो ही आप को पता चलता है कि टायर कैसे बदला जाता है, जब ट्रैफिक आजा रहा हो.

मानव ने प्रकृति पर जो विजय पाई है, वह उन लोगों के बलबूते पाई है जिन्होंने अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जंगल से निकलने का रास्ता ढूंढ़ा, खुद निशान बन कर दूसरों को समझाने की कोशिश की, आग जलाने की विधि खोजी, बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं खोजीं आदि. यह काम खत्म नहीं हुआ है. तमाम खोजों, आर्थिक उन्नति के बावजूद कुछ लोग ऐसे रह गए हैं जो अपनी कमजोरी के कारण या किन्हीं दुर्घटनाओं के कारण पीछे ही हैं. उन्हें सहायता की जरूरत है.

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