भारतीय जनता पार्टी के कर्णधारों नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति चुनवा कर पार्टी पर लगे दलितविरोधी होने के दाग को मिटाने का प्रयास किया है. नए राष्ट्रपति ने जिस सहजता और संयम से नए कार्यभार को संभाला है उस से पार्टी को संतोष हुआ होगा कि उस का चयन गलत नहीं है. दलित, पिछड़ों को भाजपा के खेमे में लाने का काम अब वह और तेजी से कर सकेगी.

राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकार बहुत अधिक नहीं होते पर फिर भी इस पद पर बैठा व्यक्ति प्रधानमंत्री को भी संवैधानिक स्थान ही दे, यह दिखना जरूरी है. रामनाथ कोविंद चाहे नरेंद्र मोदी के कारण राष्ट्रपति बने हों पर उन्हें पद की गरिमा के अनुसार ही काम करना होगा. रामनाथ कोविंद कभी राजनीतिक विवादों में नहीं घिरे, इसलिए उन्हें दूसरे दलों का समर्थन मिल सकता है, ऐसा लगता है.

नए राष्ट्रपति का पहला भाषण विवादों से ऊपर रहा और थोड़ा उत्साहवर्धक रहा है. उस में उस पार्टी की नीतियों की गंध नहीं थी जिस ने उन्हें जिताया है. यह देश के लिए सुखद बात है. एक अति साधारण घर से आने के साथ वे देश के करोड़ों नागरिकों के लिए चाहे कुछ खुद न कर पाएं, पर बहुतों को यह संतोष रहेगा कि राष्ट्रपति भवन में उन के  जैसा व्यक्ति बैठा है.

नरेंद्र मोदी ने रामनाथ कोविंद का नाम चुन कर पार्टी के लिए चाहे जो भी किया हो, नए राष्ट्रपति की छवि उन्हें बहुत से विवादों से दूर रखेगी, इतना पक्का है. इस से पहले कांग्रेस ने कई ऐसे लोगों को राष्ट्रपति भवन में बैठाया है जो देश के संपन्न, समर्थ वर्ग की आंखों में किरकिरी बने रहे. नए राष्ट्रपति लगता नहीं है कि किन्हीं विवादों के निशानों पर आएंगे और विरोधी भी उन पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से हिचकिचाएंगे.

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