दिल्ली और बिहार विधानसभाओं के चुनावों में शर्मनाक हार और पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश वअन्य कई राज्यों की पंचायतों के चुनावों में मिली हार के बाद भारतीय जनता पार्टी और उस के सिरमौर नरेंद्र मोदी अपना रवैया बदलेंगे और देश को भगवाई तिकोने झंडे के नीचे लाने की जगह उस विकास के लिए काम करेंगे जिस की हर सांस में वे चर्चा करते रहते हैं. भारतीय जनता पार्टी असल में उन महापंडितों की तरह है जो हर सांस में सर्व कल्याण भव: तो कहते हैं पर जिस के साथ गलत या बुरा या परेशानी हो रही हो, उसे सहायता देने की जगह उस से पिछले जन्म का फल मान कर सह लेने को कहते हैं और अगले जन्म में सुख पाने के लिए साधुसंतों की सेवा में लगे रहने का आदेश देते हैं.

नरेंद्र मोदी चाह कर भी इस तरह की भाषा से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. यह उन के राजनीतिक, वैचारिक डीएनए का हिस्सा है और चाहे हार हो या जीत वे इस से उबर नहीं सकते. 2002 में गुजरात के दंगों से 2004 में कांगे्रस एक बार फिर सत्ता में आ गई पर 2013 तक नरेंद्र मोदी को कोई अफसोस न रहा. उन्होंने मुसलमानों की मौतों की तुलना कुत्तों की मौतों से की, वैसी ही भाषा का इस्तेमाल उन के साथी मंत्री वी के सिंह और उन की पार्टी (भाजपा) के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कर रहे हैं. परेशानी यह होती है कि जब आप बहुत लंबे समय तक एक ही सोच, एक ही तरह के कामों, एक ही तरह के भाषणों के आदी हो जाते हैं तो आप को लगने लगता है कि यही सच है और अंतिम सच है. नरेंद्र मोदी विकास की बातें चाहे जितनी कर लें पर उस की मशीनरी वे कहां से जुटाएंगे.

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