भारत में धर्म के नाम पर समाज के विभाजन के काले बादल अब क्षितिज पर दिख रहे हैं, जबकि दुनिया के दूसरे सब से बड़े लोकतंत्र अमेरिका में अवैध ढंग से रह रहे लाखों घुसपैठियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है. लोकतंत्र का अर्थ केवल बहुमत वालों की रक्षा और बहुअधिकार वालों के हितों का ध्यान रखना नहीं होता, लोकतंत्र का मतलब होता है कि सब को वे अधिकार मिलें जो 1 अरब लोगों को मिल रहे हैं.

अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी, जो हमारी भारतीय जनता पार्टी की तरह धर्म, अमीरों, प्रभावशालियों, पीढि़यों से व्यापार करने वालों व सत्ता पर राज करने वालों की पार्टी है, उन सवा करोड़ से ज्यादा लोगों को वैज्ञानिक अधिकार देने को तैयार नहीं है जो पिछले कई दशकों से दक्षिण अमेरिकी मैक्सिको, अरब देशों, भारत, चीन, फिलीपींस आदि से जबरन देश में घुस आए. जबरन आए वे लोग देश के लिए मुसीबत नहीं क्योंकि वे कम दाम में काम करते हैं, गरीबी में रहते हैं. उन्हें सरकारी सुविधाएं नहीं मिलतीं, फिर भी वे अपने देश लौटना नहीं चाहते क्योंकि वहां भूख, गरीबी, बेकारी या राजनीतिक आतंक है.

अमेरिका का खुलापन, काम की छूट, विविधता, जीवन की सुरक्षा आदि करोड़ों लोगों को अवैध का तमगा लगे होने के बावजूद अमेरिका छोड़ने नहीं देते. हालांकि उन के अपने देश पिछले 1-2 दशकों में अच्छे हो गए हैं पर फिर भी ये वहां नहीं जाना चाहते.

बराक ओबामा पुनर्निर्वाचन के बाद अब इन अवैध लोगों को अमेरिका का नागरिक बनने का अवसर देना चाहते हैं पर वहां की कांगे्रस इस में रोड़े अटका रही है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की तरह रिपब्लिकन पार्टी भी शुद्ध बने आर्यों जैसे यूरोपवासियों के लिए अमेरिका को सुरक्षित रखना चाहती है. रिपब्लिकनों को बराक ओबामा से शिकायत उन की नीतियों के कारण नहीं, उन की त्वचा के रंग से है जैसे भारत में धर्म या वर्ण से होती है.

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