सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, स्मृति ईरानी और नितिन गडकरी के बाद अब अरुण जेटली भी आरोपों के फंदों में फंस गए हैं. आरोप सही हैं या गलत, यह तो वर्षों बाद पता चलेगा पर इतने दिन स्वच्छ नरेंद्र मोदी की सुशासित, भ्रष्टाचारमुक्त सरकार पर गलत कारनामों के छींटे दिखते रहेंगे चाहे वे विरोधियों के फेंके हुए हों या काजल की कोठरी में घुसने पर लगे हों.

भारतीय जनता पार्टी का दूसरों से अलग होने का दावा उतना ही खोखला साबित हो रहा है जितना उस की भजभज मंडली का श्रेष्ठ, महान, सभ्य, ज्ञान का जनक, त्याग और तपस्या वाले हिंदू राष्ट्र होने का दावा. भारतीय जनता पार्टी विशुद्ध भारतीय राजनीतिक दलों की तरह है जिन में भ्रष्टाचार, परिवारवाद, भेदभाव, अपनों का खयाल रखना उतनी ही मात्रा में है जितना दूसरे दलों में. आम जनता के लिए यह दुखद बात है कि जिसजिस पर उस ने भरोसा किया उस के पैर कीचड़ में सने निकले.

अरुण जेटली ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला क्रिकेट स्टेडियम को बनवाने में पैसों का हेरफेर किया या नहीं, यह साबित करना या ठुकराना वर्षों का काम है. मोटे तौर पर यह दिख रहा है कि हरी घास के नीचे बहुत काली मिट्टी है और स्टेडियम की कुरसियों के नीचे गंद की परतें जमी हैं. अब उन का लाभ अरुण जेटली को मिला, उन के परिवार को, उन के सहयोगियों को या यह सिर्फ प्रशासनिक भूल थी, यह बहुत बाद में पता चलेगा.

एक ही घर में बनी कईकई कंपनियों को उन कार्यों के लिए करोड़ों रुपए दिए गए जो उन के कार्यक्षेत्र में नहीं आते थे और वह पैसा दिया गया जो टिकट खिड़की से नहीं, औद्योगिक घरानों से आया. ऐसे में संदेह तो होगा ही. अगर अरविंद केजरीवाल की टीम उत्साहित है और भारतीय जनता पार्टी पैनिक मोड में है तो इसलिए कि उन्हें लग रहा है कि इस सारे कांड में हनुमान की पूंछ जल सकती है और लक्ष्मण को घातक चोट लग सकती है.

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