सामाजिक चलन में विवाह की आयु 18 से बढ़ कर 30-35 हो जाने से अकेलेपन की समस्या बढ़ती जा रही है खासतौर पर उन अकेले रह रहे युवकयुवतियों के लिए जो मातापिता के साथ नहीं रहते. आज समाज ऐसा हो गया है कि भाईबहन भी बिना मातापिता के एकसाथ नहीं रह पाते. मातापिता तो प्राइवेसी की शर्त को मान जाते हैं पर भाईबहन, बचपन में सुखदुख शेयर करने के कारण, इस के माने के बारे में नहीं जानते. अब ऐसे मोबाइल ऐप्स बन गए हैं जो आप को अपने आसपास के किसी अपने जैसे से मिलने का मौका दे सकते हैं. टिंडर इन में से एक है जिस में बिना हाड़मांस के बिचौलिए के एक साथी, चाहे एक शाम या एक रात के लिए, को ढूंढ़ा जा सकता है. भारत में बड़े शहरों में अकेले रह रहे युवा इस का उपयोग करने लगे हैं पर यह खतरे से खाली नहीं क्योंकि टिंडर पर हजारों ऐसे प्रोफाइल भरे हैं जो फेक हैं, शातिरों द्वारा बनाए गए हैं. उन का मकसद लूटना होता है. लूटे जाने वाली लड़कियां ही हों, जरूरी नहीं, लड़कों को भी लूटा जा सकता है.

समस्या का एक पहलू यह भी है कि आज का युवासमाज भी स्वार्थी और अंतर्मुखी होता जा रहा है. ‘दूसरों को अपनी खुशियां व अपने दुख खुद झेलने दो’ की भावना उन में भरती जा रही है. स्कूली दिनों से ही उन में भर रही प्रतियोगिता की दौड़ ने जिगरी दोस्ती को समाप्त कर दिया है. कोई अगर अकेला है तो कोई उस के लिए साथी ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करता. आज दफ्तरों में भी अपने जैसों को पाना कठिन होता जा रहा है क्योंकि कोई बिचौलिया बनने को तैयार नहीं है कि जो चोरीछिपे तथ्य प्रमाणित कर आगापीछा ढूंढ़ने में सहायता कर सके. दफ्तर में काम करने वाला कौन, क्या है, कंपनियों को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. आजकल नई ऐप्स बहुत सी जानकारी जमा ही नहीं कर देती हैं, मोबाइल को खंगाल कर पूरा कच्चा चिट्ठा खोल भी सकती हैं, व्यक्ति की पसंदनापसंद, दोस्तों, राजनीतिक सम्मान और घूमने की जगहों का डेटा सैकंडों में जमा कर भी सकती है.

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