चीन की आर्थिक प्रगति की रफ्तार अब थमने लगी है. 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि के बाद चीन अब 5 से 6 प्रतिशत की दर पर आ गया है और इस बात से भारतीय नीतिनिर्धारक खुश हैं क्योंकि भारत की आर्थिक प्रगति की दर ठीकठाक बनी हुई है. चीन की धीमी होती गति पर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि चीन उस स्तर पर पहुंचने लगा है जिस पर प्रतिशत में कम वृद्धि होने पर भी डौलरों में वृद्धि काफी ज्यादा है और भारत उस से पिछड़ता जा रहा है. चीन में जहां 95 प्रतिशत लोग पढ़लिख सकते हैं, भारत में यह आंकड़ा 62 प्रतिशत ही है जो बढ़ाचढ़ा कर दिया जाता है. भारत के 5 साल से कम उम्र के 43.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जबकि चीन के कुल 3.4 प्रतिशत कुपोषित हैं. भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 3 हजार डौलर आंकी जा रही है जबकि चीन की 13 हजार डौलर है. भारत के गरीबों की संख्या 30 से 50 प्रतिशत आंकी जा रही है जबकि चीन में यह मात्र 6.1 प्रतिशत है.

चीन सरकार का बजट भारत सरकार के बजट से 10 गुना ज्यादा है. भारत का निर्यात चीन के मुकाबले 10वां ही है. चीन की प्रगति धीमी हो जाए तो भी वह रुपयों या डौलरों में भारत की वृद्धि से 2 से 3 गुना ज्यादा रहेगी और दोनों देशों के आर्थिक स्तर में अंतर बढ़ता जाएगा. चीन की प्रति व्यक्ति उत्पादकता भारत की प्रति व्यक्ति उत्पादकता से 3 गुना ज्यादा होने के कारण भारत में गरीबी रहेगी जबकि चीन का गरीब भी ठाट से रहेगा. हमारी कमजोरी है कि हम अपने गाल ज्यादा बजाते हैं. अपने को जगद्गुरु साबित करने के चक्कर में, अभी हाल तक हम से गरीब रहे चीन से हम बुरी तरह पिछड़ रहे हैं. चीन ने राजनीतिक सुधार चाहे न किए हों पर सामाजिक व प्रशासनिक सुधार जम कर किए हैं. साइकिलों वाला देश मोटरकारों वाला बन गया है और हमारे गरीबों से साइकिलें भी छिन गई हैं. चीन ही नहीं, श्रीलंका, कंबोडिया, वियतनाम आदि तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जो हाल तक आंतरिक युद्धों के शिकार थे. हम अपने छोटे विवादों में फंसे हैं और आधी प्रतिशत वृद्धि पर झूम रहे हैं.

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