सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान सीमा पर युद्घ नहीं हुआ लेकिन उस को ले कर चुनावी मैदानों में युद्घ हो रहा है. नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उस पर ज्यादा छाती ठोंकने की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह केवल अपनी साख को सुरक्षित रखने के लिए कहा है या यह भाजपा नेताओं को निर्देश है, मालूम नहीं. सेना द्वारा स्ट्राइक को अंजाम दिए जाने के बाद आए भाजपाई बयानों को  ले कर विवाद जारी है. कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक को सेना का अपना मामला बनाए रखने की सलाह दे रही है और दावा कर रही है कि उस के शासन के दौरान भी इस तरह की स्ट्राइक की गई थीं.

यह सर्जिकल स्ट्राइक आतंकवाद का खात्मा कर देगी, इस की कोई गारंटी नहीं है. हर देश अपनी सुरक्षा के लिए कभीकभार दूसरे देश में, तो कभी अपने देश में ही नाटकीय लगने वाली सैनिक कार्यवाहियां करता  रहता है. न्यूयौर्क के ट्विन टावर्स पर आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान व इराक को नेस्तनाबूद कर डाला. पर हुआ  क्या? आतंकवाद आज भी वैसा ही है. सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कुछ सप्ताहों में ही श्रीनगर से कुछ दूर बने 75 कमरे वाले एंटरप्रैन्योर डैवलपमैंट सैंटर पर केवल 2 आतंकवादियों ने हमला कर दिया और सैंटर को पूरा नष्ट करने बाद ही इन 2 को मारा जा सका. सर्जिकल स्ट्राइक क्यों, कैसे और किस लाभ के लिए की गई, यह सेना का मामला है. यह आतंकवाद की कमर तोड़ दे या पाकिस्तान की सरकार को झुकने को मजबूर कर दे, यह कल्पना नहीं की जानी चाहिए. यह पहले से साबित हो चुका है कि देशों में शांति मेजों पर बैठ कर आती है, युद्घ के मैदानों से नहीं. हम सेना के बल पर पाकिस्तान के सिरफिरे कट्टरवादियों को भयभीत कर चुप करा सकेंगे, ऐसा नहीं लगता.

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