कहने को हम दुनिया की सब से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं, कहने को जगद्गुरु हैं, कहने को यहीं ज्ञान का उदय हुआ था, कहने को यहीं संस्कार, संस्कृति, स्थिरता, सभ्यता है और कहने को यहीं दुनिया का नेतृत्व करने वाला. बस, आज के शासकों को 30-40 साल और राज करने दो. पर असल में, हम दुनिया के मजदूर सप्लायरों में अव्वल हैं. हमारे मजदूर खाड़ी देशों में बड़ा काम कर रहे हैं. जब भी वहां विवाद होता है, हमें वहां से अपने लोगों को लाने के लिए जहाज के जहाज भेजने पड़ते हैं.

कम पढ़ेलिखे भारतीय मजदूर ही नहीं, पढ़ेलिखे एमबीए, इंजीनियर, डाक्टर भी दुनियाभर में नौकरी की भीख मांगतेफिरते हैं. अमेरिका ने अब अपने दरवाजे थोड़े बंद करने शुरू किए हैं तो हमारे युवा आस्ट्रेलिया व कनाडा का रुख कर रहे हैं.

अमेरिका के आंकड़े कहते हैं कि वहां टैक कंपनियों में काम करने वालों में सस्ते भारतीयों की बहुत मांग है. अमेरिका की इमीग्रेशन सर्विस के अनुसार, एच-1बी वीजा लिए विदेशियों की संख्या 5 अक्तूबर, 2018 को वहां 4,19,637 थी. उस में से 3,09,986 तो भारतीय ही थे. ये वे भारतीय युवा हैं जो भारत की महानता को छोड़ कर अमेरिकी कंपनियों में काम करने को तैयार हैं ताकि भारत की गंदगी, गंदी राजनीति, अंधविश्वासभरे नियमकानूनों, सरकारी लापरवाही, अव्यवस्था से छुटकारा पा सकें. अपने मातापिता, भाईबहनों, दोस्तों, संस्कृति, समाज को छोड़ कर ये युवा दूर अमेरिका में जा बसे हैं. वे कभी वहां के नागरिक बन पाएंगे, अब पक्का नहीं है पर चूंकि नौकरी जब तक रहेगी, अच्छा पैसा मिलेगा, तब तक तो ये वहां रहेंगे ही. ये प्रतिभाशाली युवा भारत के विकास में योगदान देने के बजाय अमेरिका चले गए हैं. भारत के मौजूदा शासक का ‘सब का साथ सब का विकास’ का नारा इन को भाया नहीं.

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