मोटापा बुरा है पर सरकार मोटापा कम करने के नाम पर टैक्स लगा दे, यह और बुरा है. केरल सरकार ने बर्गर, पिज्जा, टैको आदि पर 14.5 प्रतिशत का मोटापा टैक्स लगा कर इन्हें महंगा कर दिया है ताकि लोग अच्छा पौष्टिक खाना खाएं. पर यह सरकार की लोगों की जिंदगी में अनावश्यक दखल है. कल्पना करिए कि केरल सरकार फैसला करे कि आम पुरुष नागरिक का केरल में वजन

55 किलो हो और हर नागरिक जो उस से ज्यादा वजन का है, या तो अपना वजन घटाए वरना टैक्स दे. क्या यह चलेगा?

सरकार को जनता के स्वास्थ्य का खयाल रखना चाहिए पर टैक्स के चाबुक से नहीं. मोटे तो वे लोग भी होते हैं जो डोसे, चावल, लड्डू खाते हैं. उन के खाने पर बर्गर, पिज्जा जैसा टैक्स क्यों नहीं? और फिर कल को बर्गर का नाम बदल कर ब्रैड इडली, पिज्जा का नाम बदल कर चीज डोसा कर दिया गया, तब सरकार क्या करेगी?

केरल की कम्युनिस्ट सरकार को सेहत का खयाल है तो पहले वह केरल के गटरों की सफाई तो कराए जहां बदबूदार कूड़ा सड़ता रहता है. वहां भी देश के अन्य हिस्सों की तरह पान की पीक हर कोने में नजर आ जाएगी. लेकिन सरकार ऐसे काम करने से कतराती है क्योंकि इस में आय होती नहीं. उल्टे, पगपग पर सरकारी शाही कारिंदों के काम न करने पर जनता का गुस्सा उस को सहना पड़ता है. टैक्स लगाना आसान है क्योंकि एक आदेश दिया और काम हो गया.

यह भी लगता है कि इस मोटापा टैक्स के पीछे पैसे वालों की हैसियत से चिढ़ भी है. कम्युनिस्ट सरकार जानती है कि पीक तो पान खाने वालों की है, पिज्जाबर्गर वालों की नहीं, पर उन्हें परेशान कर के वह अपना गरीब प्रेम दिखा रही है पर यह गलत तरीका है. लोगों की आय पर टैक्स लग ही रहा है तो अतिरिक्त करों की क्या जरूरत, वह भी निजी पसंद पर. यह नागरिकों के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है.

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