बराक ओबामा अमेरिका के महान राष्ट्रपतियों में गिने जाएं या न गिने जाएं, पर बहुत से काम उन्होंने किए. वे न केवल पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने बल्कि उन्होंने धार्मिकता का वर्च तोड़ा और राष्ट्र को दिए अपने पहले संबोधन में ईसाइयों, यहूदियों, हिंदुओं, मुसलिमों के साथ नौन बिलीवरों यानी जो किसी भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, को भी स्वीकार किया.

पूरे 8 साल वे साधारण से दिखने वाले राष्ट्रपति रहे, जिन्होंने अमेरिका को धीरेधीरे पटरी पर लाने की कोशिश की. अमेरिका पश्चिम एशिया में शांति तो नहीं ला पाया पर उन की सरलता कमजोरी नहीं थी यह उन्होंने ओसामा बिन लादेन के घर इस्लामाबाद पर गुप्त हमला कर साबित कर दिया.

उन की दोनों बेटियों ने साधारण लोगों की तरह व्यवहार किया और अब साशा वाशिंगटन के एक रेस्तरां में कैशियर का काम कर रही है. ठीक है उस की सुरक्षा में 6 लोग हैं, पर वह साधारण कर्मचारियों की ड्रैस पहनती है और टेकअवे ग्राहकों को उन का और्डर सर्व करती है, कैश रजिस्टर चलाती है, गिन कर पैसे देती है.

इसे सरलता और सौम्यता तो कहते ही हैं उस से ज्यादा साशा का संदेश है कि बड़े होने का मतलब यह नहीं कि पैसे या ओहदे की बरबादी की जाए. हमारे नेताओं के पूतों के पैर तो पालने में नजर आ जाते हैं. वे बचपन में स्कूल में बुली बन जाते हैं और बड़े हो कर करोड़ोंअरबों की रिश्वत लेने लगते हैं.

3 दशक पहले जौन कैनेडी, जिन की हत्या अमेरिका के उल्लास शहर में कर दी गई थी, का बेटा दिल्ली में पढ़ाई के सिलसिले में आ कर रहा था. वह होटल औबेराय या ताज में नहीं बल्कि पहाड़गंज के एक छोटे से होटल में बिना चमकदमक के केवल एक सुरक्षा अधिकारी की निगरानी में रहा था.

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