नरेंद्र मोदी लगातार विदेशों की यात्राओं पर जा रहे हैं. वे जहां भी जा रहे हैं वहां से हथियार खरीद कर ला रहे हैं. फ्रांस की यात्रा में उन्होंने 36 रैफेल लड़ाकू विमान खरीदे. फ्रांस का उन के प्रति आभार तो प्रकट करना ही था क्योंकि उन से पहले ये विमान केवल इजिप्ट के तानाशाह टाइप राष्ट्रपति अदेल फतह अलसीसी ने ही खरीदे थे. रूस से 45 मिग-29के विमान पहले ही खरीदे जा चुके हैं. अमेरिका से भारी मात्रा में हथियार खरीदे जा रहे हैं. अमेरिका से एफ-35 जेट विमान खरीदने की बात चल रही है. फरवरी में इसराईल से स्वचालित हवाई ड्रोन खरीदे गए हैं. इसराईल से 52 करोड़ डौलर की मिसाइलें भी खरीदी जा चुकी हैं.

जिस देश में 96 करोड़ लोग केवल 100 रुपए रोज पर जिंदगी गुजारते हैं, वह बिना खास वजह के हथियार खरीदता रहे तो इसे सही निर्णय नहीं कहा जा सकता. देश के गरीबों की छाती पर पांव रख कर लड़ाकू टैंक, हवाई जहाज, पनडुब्बियां और मिसाइलें नहीं खरीदी जा सकतीं. नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद गरीबी से छुटकारा दिलाने के लिए खास काम नहीं किए. मेक इन इंडिया, भ्रष्टाचार मुक्त भारत, स्वच्छ भारत जैसे नारे गरीबों के लिए नहीं, देश के अमीरों के लिए हैं. गरीबों को देने के लिए उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून को ढीला न करने के लिए कमर कस रखी है ताकि किसानों की जमीनें ले कर उन्हें और उन पर निर्भर गांव के मजदूरों व कारीगरों को बेघरबार करने का हक बना रहे.

हथियारों की खरीद मुफ्त में नहीं होती. उस के लिए पैसा देना होता है. और इस देश में कमाई देश का गरीब ही करता है. यहां नई खोजों से नाममात्र का पैसा मिलता है. यहां के इंजीनियर ऐसा कोई काम नहीं करते कि उन्हें दुनियाभर के ठेके मिलते रहें. यहां की बड़ी कंपनियों के पैर दुनियाभर में नहीं पसरे हैं, उलटे उन्होंने विदेशी कंपनियों को अपने शयनकक्ष में सुलाया है. हथियार जरूरी हैं पर विदेशों से खरीद कर सुरक्षा ऐसी ही है जैसे फटेहाल गरीब किसान लठैतों को घर में रख कर दूध, घी, मट्ठा पिलाए और खुद रूखी रोटी खाए. अगर नरेंद्र मोदी का हर देश, जहां वे जाते हैं, में स्वागत होता है तो इसलिए कि वे हवाई जहाज भर कर भारतीयों के खूनपसीने का पैसा ले कर वहां जा रहे हैं.

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