अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिका में पीढि़यों से रह रहे दक्षिणी अमेरिकियों (जिन्हें वहां लैटिनो कहा जाता है), अश्वेतों (जिन्हें 2-3 सदियों पहले गुलामों की तरह लाया गया था), चीनियों (जो कुलियों का काम करने आए थे) और दूसरे देशों के गरीबों से अलग से लगने वालों के खिलाफ माहौल बना दिया. वहां के कट्टरपंथी चर्चों में भीड़ बढ़ाने वाले गोरे अमीर और कामगार भी अब 40-50 साल की बराबरी के अवसरों की क्रांति के पर कुचलने को तैयार हो गए हैं.

यह दुनियाभर के लिए खतरे का संदेश है. अमेरिका अब तक दुनियाभर के सताए गए लोगों की पनाहगाह था, अब डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी में सताए गए लोगों की कब्र बना रहा है. हिलेरी क्लिंटन की हार ने अमेरिका में सामाजिक समरसता को 50 साल पीछे खदेड़ दिया है. अमेरिका के विकास में वहां यूरोप, एशिया व अफ्रीका से आए लोगों का बड़ा योगदान है पर अमेरिकी गोरों की राय है कि यह देश उन्होंने ही बनाया है और ये इमीग्रैंट, आव्रजक उन के देश पर बोझ हैं, खतरा हैं, निकम्मे हैं, खूनखराबा करने वाले हैं.

ऐसा नहीं कि दुनिया के दूसरे देश बहुत साफ और खुलेदिल से अपने से अलग लोगों का स्वागत करते हों. हर समाज अपने से अलग लोगों को भय की निगाह से देखता है और यदि वे वहां थोड़े से भी सफल हो जाएं तो वहां का समाज बेहद ईर्ष्यालु हो उठता है.

डोनाल्ड ट्रंप ने इसी ईर्ष्या का लाभ उठा कर रंगबिरंगे लोगों के खिलाफ कट्टर गोरों को जमा किया था और अब जब तक रिपब्लिकन पार्टी का राज रहेगा, यह भेदभाव बढ़ेगा. अमेरिका के गोरों को एहसास हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, सड़कों पर प्रदर्शनकारी आदि चाहे जो कहते रहें, उन का आज भी बहुमत है और उस के सहारे वे ऐसा समाज बना सकते हैं जिस में गोरे श्रेष्ठ हों और बाकी सेवक रहें.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...