राहुल गांधी की गब्बर सिंह टैक्स धमकी ने जीएसटी की हालत पतली कर दी है और नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली की अकड़ और तेवर को ढीला कर दिया है. जीएसटी में काफी बदलाव 10 नवंबर की काउंसिल की बैठक में किए गए, हालांकि ये काफी नहीं हैं. पर यह साबित करते हैं कि न तो भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व कार्ड मजबूत है और न राहुल गांधी की कांग्रेस का अभी अंतिम संस्कार हुआ है.

राहुल गांधी ने गुजरात चुनावों को देशभर के व्यापारियों, किसानों, मजदूरों, कारखानेदारों की मुसीबतों का चुनाव बना कर भगवा पार्टी को सकते में डाल दिया है. जहां पहले राममंदिर, गौ, पाकिस्तान, कश्मीर, ट्रिपल तलाक जैसे बेहूदा, बेमतलब और बेबुनियाद के मसलों को ले कर ही चुनाव लड़े जाते रहे हैं, इस बार कामकाज को ले कर चुनाव लड़ा जा रहा है.

चुनाव अब मंदिरों के अहातों से नहीं असल में उन गलियों से लड़ा जा रहा है, जहां व्यापारी माल बेचते हैं और जहां वे किसानों और छोटे कारखानेदारों से तैयार सामान खरीदते हैं. पिछले कई चुनावों में ये लोग सिर्फ घृणा के निशाना बनते थे.

ये चुनावों में पैसा देते थे, ये चुनावों के लिए नेताओं को पालते थे, पर इन को गालियां दी जाती थीं. नरेंद्र मोदी जिन्हें कालाबाजारी कहकह कर सुबहशाम गाली देते हैं, वे उन्हीं सर्राफा बाजारों व होलसेल मार्केटों में, मंडियों में काम करते हैं, जिन को कर चोर बताया जा रहा है. वे ही घरघर सामान पहुंचाते हैं, वे ही सुबह 6 बजे से रात 12 बजे तक दुकानों को चलाते हैं, वे ही देश के एक कोने से दूसरे कोने तक कच्चा व तैयार सामान पहुंचाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...