31 मई को आए 15 उपचुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया है कि वर्ष 2019 के आम चुनावों में विपक्षी दलों में गठबंधन हो पाए या न हो पाए लेकिन इतना पक्का है कि मोदी के विरोध में अधिकांश जनता अपना वोट किसी सक्षम दल को ही देगी. आज जनता आसानी से समझ लेती है कि पलड़ा किस का भारी है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में वोटों के विभाजन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया जबकि ऐसी ही स्थिति में, इसी वोट शेयर में, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वोटों के बंटवारे के कारण भाजपा जम कर जीत गई थी. कांग्रेस की उदारता 2019 में होने वाले आम चुनावों में काफी काम आएगी. कांग्रेस ने ही कर्नाटक में विपक्षी दलों को एक मंच पर एकत्र किया था. यह जनता दल (सैक्युलर) के देवगौड़ा या उन के पुत्र कुमारस्वामी के वश का नहीं था. जो उत्साह विरोधी दलों में अब पैदा हुआ है और जिस तरह भारतीय जनता पार्टी आक्रामक भूमिका से आत्मरक्षक भूमिका में चली गई है, वह कांग्रेसी नेताओं की धौंस जताने की प्रवृत्ति को छोड़ने से हुआ है. 2019 में दल चाहे एक न हों पर होगा सीधा मुकाबला ही.

भारतीय जनता पार्टी ने अपने 4 सालों के शासन से सिद्ध कर दिया है कि वह नितांत पेशवाईराज स्थापित करना चाहती है जिस में कहने को चाहे साहूजी महाराज राज कर रहे हों पर शासन की बागडोर ब्राह्मण पेशवा के हाथों में ही रहेगी. जमीनी हकीकत से बेखबर या उस की चिंता न करने वाले आज के ब्राह्मण शासक सदियों से रामायण, महाभारत, पुराणों, स्मृतियों को आदर्श मान कर राज करना चाहते हैं. इन ग्रंथों का न तब कोई आदर्श था न आज है. चूंकि इन्हें पढ़ने की इजाजत वर्गविशेष को ही थी इसलिए इन का उपयोगसदुपयोग वही जानते थे. यदि आज संविधान को गुप्तज्ञान बना दिया जाए और इसे केवल सरकार व जज ही पढ़ सकें तो क्या देश में लोकतंत्र रहेगा? वह हिटलरशाही होगी और जो जनता को मंजूर नहीं है.

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