भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से गुजरात के पाटीदार के हार्दिक पटेल की भूख हड़ताल को अनदेखा किया और कोई भी मंत्री या नेता उन के पास नहीं फटका, साफ करता है कि भाजपा के लिए पाटीदार जैसे किसान, कामगार, मजदूर, छोटे व्यापारी केवल सेवा के लिए हैं, मेवा के लिए नहीं. सदियों से पौराणिक कहानियां सुनासुना कर गांवगांव में पिछड़ों यानी अदर बैकवर्ड कास्टों का धर्म और धंधों में जम कर इस्तेमाल किया गया और उन्हें हमेशा ही गरीबी व गुरबत में रख कर नेतागीरी भी चमकाई गई और पंडागीरी भी.

पिछड़े अलगअलग राज्यों में अलगअलग नाम से जाने जाते हैं. कहींकहीं उन का रुतबा ऊंचा हो गया है और वे अपने को सवर्णों के बराबर मानते हैं. उन्हीं में से कुछ भगवा चोला पहन कर पंडों का सा काम करने लगे हैं. जमीन की खाने वाले ये लोग आज फिर भी मोहताज हैं, बेहाल हैं. इन्हें न पहले मेहनत का फल मिला और न आज लोकतंत्रवोटतंत्र के जमाने में मिल रहा है.

इस की वजह यह भी रही है कि ये लोग आमतौर पर इस बात पर खुश रहते हैं कि इन के आसपास बसे दलितों से ये बहुत ऊंचे हैं. जो फटकार इन्हें पंडों, ठाकुरों और सेठों से मिलती है उस का गुस्सा दलितों पर निकाल कर दिल ठंडा कर लेते हैं. इसी में इन की बदहाली की वजह छिपी है.

देश की आज की जरूरत भरपेट खाना, अच्छा कपड़ा और पक्का मकान है जो पिछड़े और दलित साथ मिल कर मुहैया करा सकते हैं. अकेले किसी के बस का नहीं है. सरकारें इन्हें तो पत्तल पर रख कर परोस देंगी, यह खामखयाली है, सपना है. नेताओं के भाषण चाहे कुछ हों रोटी, कपड़ा और मकान मेहनत से आएंगे और जब तक गांवकसबों में सब काम नहीं करेंगे, कुछ नहीं होगा. लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, कांशीराम, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं की पहले और अब भी इन लोगों को साथ लाने की कोशिशें हो रही हैं पर यह आसान नहीं है क्योंकि ऊंचनीच का भेदभाव पीढि़यों पुराना है और कुछ भाषणों से दूर नहीं हो सकता.

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