रात को सोती महिलाओं की चोटियां किसी परलौकिकता के कारण काट लेने पर कुछ लिखना व कहना बेकार है. 21वीं सदी में भी यह देश उलटा जा रहा है और तर्क, वैज्ञानिकता, स्वाभाविकता, संभव के सत्य को गहरे गड्ढे में फेंक कर छद्म इतिहास, चमत्कारों, अंधविश्वासों, पूजापाठों, हवनों, दानपुण्य में भारी विश्वास कर रहा है.

आदिम युग में भी आदमी तर्क और उपलब्ध जानकारी के अनुसार जीवित रहा है और उसी आधार पर उस ने अपने खाने का जुगाड़ किया, जानवरों से सुरक्षा की और प्रकृति का मुकाबला किया. आज समझदारी को छोड़ कर पूरा देश, राष्ट्रपति से ले कर अनपढ़, दलित तक एक लहर में डूब रहा है जिस में विज्ञान और तर्क की गुंजाइश ही नहीं.

चोटी काटने का मामला गणेश को दूध पिलाने की तरह है, जिस के पागलपन में हजारोंलाखों लोगों को बहकाया जा सकता है. खिलंदरी को दुष्ट आत्मा का नाम दे कर धर्म के दुकानदारों ने हवन, पूजापाठ, मंत्रजंतर का उपाय बताया और अपना उल्लू सीधा कर लिया. हैरानी की बात तो यह है कि देश की उच्चशिक्षित जनता भी इस का शिकार है.

जहां चंद्रयान भेजने वाला इसरो का मुख्य अधिकारी तिरुपति का आशीर्वाद मांगने जाए, जहां गणेश के सिर की तुलना आधुनिक सर्जरी कला से की जाए, जहां लंबे पुलों का निर्माण वास्तु के आधार पर और

2 करोड़ रुपए की गाड़ी की सुरक्षा के लिए लालकाले कपड़े टंगे हों, वहां चोटी काटने की घटनाओं पर क्या आश्चर्य किया जा सकता है.

यह देश अंधश्रद्धा की ओर तेजी से दौड़ रहा है. इस बार कांवडि़यों को आदेश दिया गया कि वे भगवे तिकोने झंडे न फहराएं, तिरंगा राष्ट्रीयध्वज फहराएं यानी यह घोषित कर दिया गया है कि भारत इसलामिक स्टेट के काले झंडे वाला नहीं, तिरंगे झंडे वाला भगवा देश है. इस देश में कोई भी अगर भगवा से भिन्न विचार रखता है, तो वह देशद्रोही है.

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