काले धन की समस्या पर भारतीय जनता पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनावों से पहले बड़े वादे किए थे कि बाहर गया काला धन वापस ले आया जाएगा, पर यह वादा तो वादा ही रह गया. इसके बजाय काले धन को खत्म करने के नाम पर 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक झटके में देशवासियों की अरबोंखरबों की नकद संपत्ति के 5 सौ व एक हजार रुपए के चल रहे नोटों को अवैध घोषित कर दिया, चाहे वे काले थे या सफेद.

कहने को इस थोड़े से कष्ट से देश में विकास आने की बात कही गई है, पर इस कदम से सरकार ने अमीरों, धन्नासेठों सहित आम गरीब मजदूर, औरत, छोटे व्यवसायी सब को संकट में डाल दिया और बजाय कमाई करने के उन्हें बैंकों के आगे नोट बदलने की लाइनों में खड़ा करने को मजबूर कर दिया.

काला धन भी धन ही है, पहली बात तो यह समझने की है. हां, इस पर टैक्स नहीं दिया गया और यह लोगों की अकाउंट बुकों में नहीं आया. यह सिर्फ टैक्स वंचित पैसा है, असल काला धन तो वह है जो जबरन लिया गया हो. जो या तो चोरडाकुओं के पास होता है, पर ज्यादातर नौकरशाहों और नेताओं के पास होता है. व्यापारियों के पास जो कैश होता है, वह कमाया हुआ होता है. उस में से 10 से 25 प्रतिशत कर नहीं दिया गया होता. नेताओं और नौकरशाहों के पास पूरा का पूरा बिना कमाए होता है.

देश को घुन की तरह नेताओं व नौकरशाहों का पैसा खाता है. धन्नासेठों, उद्योगपतियों के पास जो नकद होता है, वह अर्थव्यवस्था के लिए बिना काम का होता है, क्योंकि उस पर अगर कर न भी दिया गया हो, तो वह इतना कम है कि उस का कुछ मतलब नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कदम से किसे ज्यादा फर्क पड़ेगा, यह आंकना कठिन है. अगर सिर्फ नौकरशाहों और नेताओं को सुधारना होता तो बहुत अच्छी बात थी और अगर कर न दिए गए पैसे पर कर वसूलना होता, तो वह तो अब भी नहीं मिलेगा. तिजोरियों में बंद पैसा बेकार हो जाएगा, पर सरकार को उस का कोई हिस्सा नहीं मिलेगा.

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