इंदिरा गांधी ने जब अमीरों पर बैंकों का सरकारीकरण कर प्रहार किया था तो देशभर में गरीबों के चेहरों पर मुसकान दौड़ गई थी. इंदिरा गांधी को 1971 के चुनावों में भारी लाभ मिला था पर 1973 तक उन का जादू गायब हो गया था. नोटबंदी इंदिरा गांधी के 1969 के बैंकों के सरकारीकरण जैसी अमीरों की जेब से कालाधन निकालने की तरकीब साबित होती है या इंदिरा गांधी के 1975 में देश को डराने व जनसंख्या पर काबू पाने के लिए दोहरे मतलब से लागू की गई नसबंदी, यह अब केवल अनुमान नहीं रह गया है, परिणाम भी दिखने लगा है.

नोटबंदी का खयाल जितना अच्छा है, व्यवहार में यह उतना ही खतरनाक है. हर आतंकवादी को गोली मार दो कहना आसान है पर असल में आतंकवादी कोई लंबे कान लिए तो नहीं घूमता कि उसे पकड़ा और मार डाला. कालेधन वाले भी इसी तरह विशेष लोग नहीं होते. जिसे सरकार कालाधन कहती है वह किस के पास नहीं है? हर पैसा जिस पर बारबार टैक्स नहीं दिया गया हो कालाधन हो जाता है. एक फैक्टरी में ओवरटाइम करने वाला मजदूर जिसे नकद पैसा दिया गया हो, कालाधन रखता है, हर कुली जिसे सामान उठवाने वाले ने काले पैसे से पैसे दिए, कालाधन रखता है, हर रेस्तरां जहां बिल भी कटता है वहां दी गई टिप कालाधन है. यह हर देश की अर्थव्यवस्था में हरेक के पास होता है, अमीर से ले कर गरीब तक के पास होता है.

नोटबंदी से हर पैसा काला हो जाता है, यहां तक कि वह भी जो बारबार का टैक्स दे कर कमाया गया हो. बैंकों में रखे पैसे के अलावा हर नोट, चाहे किसी के पास हो सरकार ने 8 नवंबर को काला घोषित कर दिया और 120 करोड़ जनता आज कालेधन के साए में है, कालेधन की गुनहगार है.

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