देश लोकतंत्र से अब जांचतंत्र बन गया है. राजनीतिबाजों और अफसरों ने इस तरह लूट मचा रखी है कि देश की अदालतें, केंद्रीय जांच ब्यूरो, सतर्कता आयोग, चुनाव आयोग, मीडिया आदि हर समय जांच करते नजर आ रहे हैं और मजेदार बात यह है कि हर जांच में कुछ न कुछ मिल जाता है. टाटा व अंबानी घरानों के लिए जनसंपर्क का काम कर रहीं नीरा राडिया के फोनों पर हुई बातचीतों के टेपों से सुप्रीम कोर्ट को अपराधों की बू आई है और उस के आधार पर टाटा, अंबानी, आदित्य बिड़ला, यूनीटैक की कंपनियों पर शक पैदा हो गया है.

उधर कोयला खानों में हेरफेर से एलौट का मामला ठंडा नहीं हुआ कि 17-18 नामी उद्योगपति जांच के लपेटे में आ गए हैं. इतना ही नहीं, जलते कोयले की गरमी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को झुलसाने लगी है.

केंद्र सरकार तो जांच के दायरे में है ही, राज्य सरकारें भी इसी तरह के कांडों में फंसी हैं. ऐसा महसूस होने लगा है कि सरकार का काम केवल बेईमानी करना रह गया है और जिस का जहां बस चलता है वह वहां हाथ मार रहा है. जितने पकड़े जाते हैं उन से हजारगुना बच निकलते हैं.

देश में इस आपाधापी का एक कारण यह है कि लोगों ने अपनेआप को आज भी राजाओं का सेवक सा समझ रखा है, लोकतंत्र को अपने सामूहिक कार्यों के लिए बनी संस्था न मान कर अपने पर राज करने की छूट देने वाला तरीका मान लिया है और वोट की मशीन से जिसे चुना उसे अपने पर अनाचार और अत्याचार करने का हक भी दे दिया.

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