नेल्सन मंडेला के देहांत के साथ दुनिया से शांतिपूर्वक तरीके से सत्ता बदलवाने वाला नेता विदा हो गया. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के खिलाफ अगस्त 1962 से फरवरी 1990 तक जेल में बंद रहने वाले नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका को गोरों के राज से तो निकाला ही, दुनियाभर के दबेकुचलों को एक नया रास्ता भी दिखाया.

नेल्सन मंडेला साधारण से घर में पैदा हुए पर उन्होंने असाधारण यातनाएं सहीं और न झुकते हुए गोरों को दक्षिण अफ्रीका का शासन छोड़ने को मजबूर कर दिया. महात्मा गांधी के अनुयायी नेल्सन मंडेला ने गोरों से तो मुक्ति दिला दी पर ठीक गांधी की तरह अपने देश को सही शासन न दिलवा पाए. वे कुछ साल दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे पर वर्ष 1999 में उन के राजनीति से संन्यास लेने के बाद दक्षिण अफ्रीका आज तक अस्थिर सा है.

एक शिखर व्यक्तित्व जरूरी नहीं है कि देश की पूरी जनता और भावी प्रबंधकों में वही त्याग व वही सिद्धांतवादी नीति की विरासत छोड़ जाए. अहिंसा के पैरोकार महात्मा गांधी को खुद 1947 में विभाजन की हिंसा से रूबरू होना पड़ा. भ्रष्टाचार, बेईमानी, कूटनीति और परोक्ष रंगभेद से भरे दक्षिण अफ्रीका में खुद नेल्सन मंडेला को जीवन के अंतिम वर्ष गुजारने पड़े. हां, दक्षिण अफ्रीका बाकी अफ्रीका के मुकाबले स्थिर है और उसे भयंकर गृहयुद्ध का सामना नहीं करना पड़ा.

व्यक्तिगत जीवन में पत्नियों से विमुखता और 1 बेटे की एड्स से मृत्यु ने नेल्सन मंडेला के आभामंडल पर असर डाला. नेल्सन मंडेला अपनी तरह के अंतिम नेता माने जाएंगे जिन्होंने अपना तकरीबन पूरा जीवन संघर्ष में बिताया. आज दुनियाभर में जो राज कर रहे हैं वे सब राजनीति की नाजायज संतानें कही जा सकती हैं. कोई भी जनता की सेवा करते हुए सर्वोच्च पद पर नहीं पहुंचा. नेल्सन मंडेला के साथ एक विशिष्ट पीढ़ी समाप्त हो गई है.

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