दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस के 6-7 कालेजों में केवल उन छात्रों को ही मनपसंद विषय में प्रवेश मिल पाया है जिन के अंक 95% से अधिक हैं. कालेजों में 95% की सीमा ऐसी हो गई है जैसे किसी गांधी रोड की पटरी हो, जिस पर सैकड़ों लोग चल रहे हों. जिन्हें उम्मीद थी कि उन्हें एक बढि़या कालेज में प्रवेश मिलेगा वे 12वीं में अगर कम अंक लाए तो समझो जीवन बेकार हो गया.

दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई के कालेजों में प्रवेश लेना अब बहुत कठिन हो गया है, क्योंकि इस तरह के नए कालेज बन नहीं रहे और जो हैं उन में कटऔफ बहुत ज्यादा है.

इसी ज्यादा कटऔफ के गोरखधंधे का कमाल है कि लगभग अनपढ़ छात्र बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश से 75-80% अंक ले आते हैं, क्योंकि उन के पेपर व मार्कशीट फेक या नकल पर आधारित होते हैं. यह ठीक है कि बढ़ती जनसंख्या में कुछ चुने हुए कालेजों को वरीयता मिलेगी पर यह समझना कि यदि उन कालेजों में प्रवेश नहीं मिला तो जीवन बरबाद हो जाएगा, गलत है.

आज 12वीं की परीक्षा में 90% से अधिक अंक ही एक भरोसेमंद भविष्य की गारंटी रह गए हैं और यह एक साल या एक परीक्षा जीवन को निर्धारित कर दे, यह एक तरह से गलत है. देश भर में हजारों कोचिंग सैंटर्स इसी वजह से धड़ल्ले से पैसा कमा रहे हैं, क्योंकि मातापिता अपनी सारी जमापूंजी लगा कर उस हद को पार करवाने में लगा देते हैं. अगर बच्चे को वे अंक न मिलें जिन की अपेक्षा थी तो पूरी संपत्ति कई मामलों में समाप्त हो जाती है और हाथ में बेकार हुआ बच्चा बोझ हो जाता है.

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