नशे की बढ़ती आदत पर आंख मूंद लेने से काम नहीं चलेगा. शाहिद कपूर, आलिया भट्ट अभिनीत अनुराग कश्यप की फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ चाहे अच्छी हो या बुरी, इस समस्या को उठाती है, तो पंजाब की भाजपा समर्थक सरकार को आलोचना से बचाने के लिए इसे काटनेछांटने की सर्टिफिकेशन बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की कोशिशों को मुंबई उच्च न्यायालय ने रोक कर चिंतकों को राहत दी है. जब से देश का धार्मिक माहौल गरमाया है, संस्कृति, संस्कार, परंपरा का व्यापार चमक रहा है और जो भी इस के खिलाफ कुछ बोलता या करता है या इस की पोल खोलता है उस का जबरन मुंह बंद करने की कोशिश की जा रही है. न्यायालय आमतौर पर सरकारों पर कंट्रोल कर रहे हैं पर न्यायिक प्रक्रिया महंगी और समय लेने वाली है और इस की बड़ी कीमत देनी पड़ती है.

‘उड़ता पंजाब’ पर चली लगभग 70 कैंचियों में से केवल एक को रख कर मुंबई उच्च न्यायालय ने भले ही सरकार को जताने की कोशिश की हो कि देश पर एक सोच का राज नहीं है, पर सच यह है कि यह सरकार और सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाएं इस प्रकार के काम करती रहेंगी, क्योंकि यह स्पष्ट है कि आम नागरिक सही होते हुए भी सरकार से हर बार पूरी तरह टक्कर नहीं ले सकता. हर छोटे मामले पर उच्च न्यायालय में जाना और पूरे मीडिया को अपनी तरफ कर लेना संभव नहीं है. नशे के खिलाफ फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ बनी तो है पर फिल्म वाले भी दूध के धुले नहीं हैं. आजकल फिल्मों में धड़ल्ले से शराब पीने की आदत डलवाई जा रही है. पक्की बात है कि शराब के 4-5 बड़े निर्माता करोड़ों रुपए इन फिल्म निर्माताओं को दे रहे हैं ताकि फिल्मों में शराब पीते ऐसे दिखाया जाए मानो पानी पिया जा रहा हो. पहले भी पार्टियों में शराब पीते दिखाया जाता था पर केवल खलनायक कैरेक्टरों द्वारा. अब हीरोइनें पीती हैं और कुछ मामलों में मांएं भी पीती दिखाई जा रही हैं.

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