जिन चुने प्रतिनिधियों पर अपराध साबित हो गया हो वे विधानसभा या लोकसभा के सदस्य नहीं रह सकते, सुप्रीम कोर्ट की कानूनों की इस व्याख्या ने हड़कंप मचा दिया क्योंकि कितने ही विधायक व सांसद ऐसे हैं जिन्हें 1 अदालत ने अपराधी करार दिया पर अभी उन की अपीलों पर विचार होना बाकी है. वे बाहर हैं क्योंकि उन्हें जमानत मिली हुई है और इसी नाते वे अपनी सदस्यता बनाए रख पा रहे हैं. चूंकि इस के दायरे में लालू प्रसाद यादव जैसे कई नेता आ रहे हैं, इसलिए कांगे्रस ने अध्यादेश बनाया ताकि वे आधेअधूरे सदस्य बने रह सकें. 

पर इस अध्यादेश पर जो जनरोष पैदा हुआ और जिस तरह से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आंख मूंद कर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया उस से कांग्रेस के तेवर ढीले पड़ गए. राहुल गांधी ने एक आम प्रैस सम्मेलन में अचानक पहुंच कर इस अध्यादेश को नौंनसैंस यानी बेहूदा और फाड़ कर फेंकने लायक घोषित कर दिया. उस से कांग्रेस ही नहीं, अध्यादेश का विरोध कर रहे दल भी सकते में आ गए.

अध्यादेश तो अब पानी में गया और नतीजे के तौर पर सोमवार, 30 सितंबर को रांची की एक विशेष अदालत के फैसले के अनुसार चारा घोटाले मामले में लालू प्रसाद यादव को मुजरिम करार दे दिया गया. यह घोटाला लालू प्रसाद यादव के तब के संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहते किया गया था. उन्हें सजा ही नहीं हुई, शायद वे वर्षों तक चुनाव भी न लड़ सकें. हां, अगर अपील में उन की जीत हो जाए तो बात दूसरी.

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