नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान टांयटांय फिस हो गया लगता है. बाकी देश को तो छोडि़ए राजपथ, राष्ट्रपति भवन, शास्त्री भवन, केंद्रीय सचिवालय, नौर्थ ब्लौक, हैदराबाद हाउस जहां विदेशियों को बुला कर खाना खिलाया जाता है, सब के आसपास गंदगी के ढेर हैं. राजपथ के दोनों ओर बने तालाबों में गंदगी भरी है, किनारों पर मिट्टी के ढेर लगे हैं, टेढे़सीधे ट्री गार्ड हैं, बेतरतीब झाडि़यां हैं.

इतनी सफाई तो हर घरवाली कर लेती है. जिस में थोड़ा सा दम होता है वह अपने चार गमलों को भी लीपपोत कर साफ रखती है. अगर बाग हो तो खुद या आधेअधूरे माली से साफसफाई करा लेती है. साधारण मध्यवर्गों के घर आमतौर पर इतने गंदे, बेतरतीब नहीं होते हैं जितना कि राजा की गद्दी का इलाका है.

स्वच्छ भारत अभियान में झाड़ुओं का तो इस्तेमाल हुआ पर यह नहीं सोचा गया कि सारा कूड़ा कहां जाएगा, कैसे जाएगा और क्या होगा उस का. कोई वजह नहीं कि देश इस छोटी चीज का प्रबंध न कर सके. दिक्कत यह है कि हम सब चाहते हैं कि सफाई का काम कोई और करे और जो करे उसे दुत्कारते हैं, उसे अछूत समझते हैं. नौकरी के लिए तो वह व्यक्ति झाड़ू उठा लेगा पर कभी दिल से सफाई नहीं करेगा और सफाई, जैसा हर घरवाली जानती है, हर समय का काम है. ऐसा नहीं कि एक बार किया और भूल गए.

नरेंद्र मोदी सरकार ने तो इस को नारा बना दिया जैसा कभी महात्मा गांधी ने बनाया था. मगर दोनों ने ही सफाई मैनेजमैंट की पूरी स्टडी नहीं की और इसीलिए अगर यह कहा जाए कि हमारा ही सब से गंदा देश है तो शायद गलत न होगा. हम से छोटा श्रीलंका कहीं ज्यादा साफसुथरा नजर आता है, क्योंकि वहां सफाई करने वालों को जन्म से नीचा नहीं माना जाता.

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