कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु कभी देश का गार्डन सिटी हुआ करता था पर अब वह ट्रैफिक जाम सिटी बन गया है. लगभग पूरे बेंगलुरु में सड़कों पर 12-14 घंटे ट्रैफिक जाम रहता है. ऊंचाई पर बसे इस शहर की ठंडक गाडि़यों के निकले धुएं, अंधाधुंध भवन निर्माण और बढ़ती आबादी के कारण समाप्त हो गई है. राज्य सरकार ने 1,000 करोड़ रुपए खर्च कर के बेंगलुरु के मध्य से स्टील फ्रेम पर, 6.7 किलोमीटर का फ्लाईओवर बनाने की योजना बनाई पर शहरवासी उस का विरोध कर रहे हैं कि उस से शहर का सौंदर्य नष्ट हो जाएगा. इस तरह की समस्याएं सारे शहरों में हैं. यह तो अब पक्का है कि गांवोंकसबों से भारी संख्या में लोग पहले निकट के बड़े शहर में जाएंगे और फिर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में पैर जमाने की कोशिश करेंगे क्योंकि इन्हीं शहरों में कैरियर बन रहे हैं और इन्हीं में जीवन की विविधता मिलती है. बाकी शहर और कसबे अभी भी 19वीं सदी में जी रहे हैं जहां अपनी मरजी से जीनारहना भी कठिन है. ऐसे में इन बड़े शहरों को अपने में और भीड़ को खपाना पड़ेगा चाहे इन का सौंदर्य नष्ट हो, आनेजाने की सुविधा तो देनी ही होगी.

नागरिकों को जरूरी सुविधाएं देने की जिम्मेदारी सरकार की है. इस के लिए सरकार व स्थानीय प्रशासन योजनाएं बनाते हैं. हर सरकार और नगरनिकाय सिर्फ पैसे लूटने के लिए इस तरह की योजनाएं बनाते हैं क्योंकि सत्ताधारी नेता जानते हैं कि जब तक काम पूरा होगा तब फीता काटने के लिए वे होंगे नहीं. वे टैंडर जारी करते समय रिश्वत ले कर काम को भूल जाते हैं और सारी योजना व दूरदर्शिता धरी रह जाती है. यदि किसी कारण जनता का विरोध होने लगे तो हर नेता सोचता है कि 5-10 साल में पूरे होने वाले काम में वह नाराजगी क्यों मोल ले.

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