क्या इस देश से रिश्वतखोरी को समाप्त करना संभव है? अगर देश की अदालतों का हाल यही रहा तो शायद कभी नहीं. आप चाहे जितना कठिन व कठोर कानून बना लें, मामला तो अदालतों में जाएगा ही और रिश्वतखोर लौबी बहुत ही चालाक, पैसेवाली होने के साथ इतनी पहुंच रखती है कि उसे हर मामले में साफ छूट जाने का विश्वास रहता है.

सुप्रीम कोर्ट के 24 जुलाई, 2015 को दिए गए एक फैसले को सिर्फ उदाहरण के लिए देखें. इस मामले में गुरजंत सिंह नामक व्यक्ति सरकारी कंपनी फूड कौर्पोरेशन औफ इंडिया में टैक्निकल असिस्टैंट के पद पर काम करता था. फूड कौर्पोरेशन की चावल की खरीद को वह तकनीकी प्रमाणपत्र जारी करता था. 30 मई, 2003 को एक व्यापारी के माल को पास करने के लिए उस ने 1 लाख रुपए मांगे पर 50 हजार रुपए में सौदा तय हुआ.

व्यापारी ने हिम्मत दिखा कर फरीदकोट के विजिलैंस औफिसर से शिकायत कर दी और जाल बिछा कर पाउडर लगे, नंबर नोट किए गए नोटों के साथ गुरजंत सिंह को पकड़ लिया गया पर यह मामले का अंत नहीं था. 10-15 गवाह जिला न्यायाधीश के सामने बुलाए गए. उन से क्रौस एक्जामिनेशन किया गया. नवंबर 2005 में गुरजंत को 3 साल की सजा व उस पर 1 लाख रुपए का जुर्माना हुआ. लेकिन वह उच्च न्यायालय में गया.

उच्च न्यायालय ने 9 साल बाद यानी 24 दिसंबर 2014 को निर्णय सुनाया कि सजा बरकरार रखी जाए. गुरजंत सिंह को यह स्वीकार्य न था. उस की सोच के मुताबिक, रिश्वत लेना तो सरकारी व्यक्ति का हक है. वह सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा जहां उस की अपील सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली गई. निर्णय आया 24 जुलाई, 2015 में. निर्णय में सजा घटा कर 2 साल कर दी गई.

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