राजस्थान व मध्य प्रदेश में भारी बहुमत व छत्तीसगढ़ में जीत के बावजूद भारतीय जनता पार्टी डरी हुई है कि नरेंद्र मोदी का करिश्मा दीवाली से पहले ही फुस्स न हो जाए. इस में अरविंद केजरीवाल का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि उन्होंने यह साबित कर दिया है कि दिल्ली की तरह मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के मतदाता कांग्रेस से नाराज थे न कि नरेंद्र मोदी की हिंदुत्व की हुंकार के चलते उन्होंने भाजपा को वोट दिया.

नरेंद्र मोदी चुनावों से पहले विकास की बातें तो कर रहे थे पर भ्रष्टाचारमुक्त, दोषरहित प्रशासन की नहीं. गुजरात में नरेंद्र मोदी की पहले की जीत में हिंदूमुसलिम दंगे और अमीर घरानों को दी गई सहूलियतों का योगदान रहा है. छत्तीसगढ़ और दिल्ली में यह करिश्मा नहीं चला क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी थी और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसियों की नक्सलियों द्वारा की गई हालिया हत्याओं की कुछ सहानुभूति.

भाजपा के कुछ नेता अब फिर प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे हैं और मोदी फैक्टर की बात अब दबे शब्दों में कह रहे हैं. ये समाचार भी छपवाए जा रहे हैं कि लालकृष्ण आडवाणी को बहादुरशाह जफर की तरह मना कर दिल्ली का सिंहासन दिया जा सकता है, अगर मोदी के नाम पर पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं और अन्य दलों ने साथ नहीं दिया.

यह पक्का है कि दूसरे दल नरेंद्र मोदी का साथ तब ही देंगे जब उन्हें लगेगा कि इस के अलावा कोई चारा नहीं. अटल बिहारी वाजपेयी कोई उदार नेता न थे पर मोदी के मुकाबले बहुत सौम्य व मित्रवत थे. उन से लोगों की अच्छी पटती थी. मोदी का व्यवहार उखड़ा व अक्खड़ है और वे अभी से सिर पर राजमुकुट लगाए जैसे घूमते नजर आ रहे हैं.

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