जीवन उतना सरल नहीं है जितना आज के किशोरों को लगता है. एक समय था जब किशोरों को अपने घरों में ही भाईबहनों व रिश्तेदारों के साथ प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता था. हां, उन दिनों घर आज की तरह सूने नहीं होते थे. फिर भी सत्य यह है कि किशोर आज ज्यादा पा रहे हैं और यह हमेशा मिलता रहेगा, सुरक्षा रहेगी, सोचना गलत है.

बड़े पेड़ के वे दिन सब से खतरनाक होते हैं जब उस का तना एक लाठी या डंडे के लायक हो जाए. तभी उस को उखाड़े जाने के अवसर ज्यादा होते हैं. इसी तरह गरमियों में भी उगते सूरज की रोशनी भाती है पर वह ज्यादा देर तक लुभावनी नहीं रहती. किशोरावस्था में वह मजबूती नहीं होती जो परिपक्वता आने पर मिलती है.

इसलिए जीवन की कठिनाइयों को झेलने की ट्रेनिंग लेना हर समय जरूरी है. किशोरों का तो यही काम होना चाहिए कि वे किसी भी अवसर को न खोएं. घर के छोटेबड़े कामों के साथ चैलेंजिंग, रोमांचक, अनूठे कामों को भी इस दौर में करें. इतना पढ़ें कि हर लाइब्रेरी छोटी पड़ जाए. इतना नाचें कि हर स्टेज छोटा पड़ जाए. इतना चढ़ें कि पहाड़ बौना दिखे. इतना तैरें कि हर स्विमिंग पूल गुसलखाने का टब लगे. इतना लिखें कि कागज की कमी पड़ जाए. माना कि आज सरकार को किशोरों की चिंता नहीं है. किशोरों को तो सरकार की तरफ से छोटे बच्चों को मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिलतीं. वे अधर में रहते हैं. मातापिता समझते हैं पर जानते नहीं कि इन सुनहरे वर्षों का इस्तेमाल कैसे हो जबकि समाज को और सरकार को अपने भ्रष्टाचार से ही फुरसत नहीं होती.

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