धर्म की कट्टरता की स्वतंत्रता या आम नागरिक की निडर, निर्भीक, स्पष्टवादी विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता--कौन ऊपर है, यह सवाल आज दुनियाभर में खड़ा हो गया है. दुनियाभर के लोकतंत्रों के संविधान विचारों की स्वतंत्रता, जिस में प्रैस की स्वतंत्रता शामिल है, की बात करते हैं पर असल में यह स्वतंत्रता सरकार के मुकाबले है. आम नागरिक के संगठित धर्मों, माफिया, व्यापारों, उद्योगों, अदालतों, समूहों से कोई स्वतंत्रता नहीं मिलती और दुनियाभर के लेखक व रिपोर्टर हर समय अदृश्य जंजीरों से बंधे रहते हैं.

धर्म की कट्टरता की वापसी, जो इसलामी कट्टरता के मार्फत आई है, सब से खतरनाक है, सरकार की रोकटोक से भी ज्यादा, तानाशाहों के फरमानों से भी ज्यादा. इसलाम और दूसरे धर्मों को भ्रष्टाचार, कुशासन, गलत नीतियों से कोई मतलब नहीं होता पर लोगों के निजी व्यवहार, स्त्रियों के आचरण, स्त्रीपुरुष संबंधों पर उस की कड़ी नजर रहती है और उन पर निर्णय देने का वे अपना एकाधिकार मानते हैं. वे विचारकों, कार्टूनिस्टों, पत्रकारों, लेखकों को उस में दखल न देने के आदेश देते रहते हैं. पेरिस में शार्ली एब्दो पत्रिका के छोटे से दफ्तर पर हमला कर 10 पत्रकारों व 2 पुलिसकर्मियों को दिनदहाड़े मौत के घाट उतार उन्होंने जता दिया कि उन की कट्टरता के खिलाफ विचारों को रौंदने की उन की नीति के आड़े कोई नहीं आ सकता. धर्म के कट्टर अनुयाइयों का खयाल है कि खुद तथाकथित ईश्वर ने उन्हें यह अधिकार दिया है कि दुनिया चलाने के फैसले वे करेंगे और उस में किसी का दखल बरदाश्त न करेंगे.

युगों से धर्म तलवार से अपने को थोपता रहा है. बौद्ध राजाओं ने अहिंसा का मार्ग नहीं अपनाया और यह हिंसा दूसरों, विधर्मियों, शत्रुओं के खिलाफ ही नहीं, अपनों के खिलाफ भी होती रही है. सभी ग्रंथों में खुदबखुद इस हिंसा का जिक्र है, शायद चेतावनी के रूप में कि जो भी धर्म के विरुद्ध हो, चाहे अपना या पराया तलवार को झेलेगा. आज तलवारों की जगह एके 47 ने ले ली है, टैंकों ने ले ली है और पाकिस्तान व ईरान आएदिन परमाणु बम तक की धमकी देते रहते हैं. कार्टूनिस्ट की तो बिसात ही क्या है. धर्म डरता इसलिए है कि वह ताश के पत्तों के घर में रहता है जो तर्क की हलकी हवा में उड़ जाए. कमाल यह है कि इस के बावजूद धर्म के घर खड़े हैं और फलफूल रहे हैं. जो शक्ति, पैसा और अंधभक्ति धर्म जमा कर लेते हैं वह एक अच्छा शासक, नेता, विचारक नहीं जमा कर पाता. पर यह धर्म की श्रेष्ठता नहीं, धर्म बेचने व थोपने की चतुराई है.

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