कांगे्रस की मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में जो बुरी गत बनी है उस से सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या उस का मार्क्सवादी कम्युनिस्टों का सा हाल होने वाला है जिस के नेता तो दिखते हैं पर समर्थक नहीं. कांगे्रस को इन तीनों राज्यों में अभी काफी मत मिले हैं पर चूंकि सीटें नहीं मिली हैं इसलिए कांगे्रसी नेता पार्टी छोड़ कर जा सकते हैं.

राजनेता किसी सेवा और जनता की समस्याएं दूर करने के ध्येय से कांग्रेस में नहीं आते. भारतीय जनता पार्टी तो फिर भी धर्म समर्थकों को धकेल लेती है जो हिंदू संस्कृति के नाम पर काम करने को तैयार रहते हैं, कांगे्रसी नेताओं को तो सिवा पावर व पैसा ही चाहिए होता है. कांगे्रस का पतन देख कर वे कब भाग जाएं, कहा नहीं जा सकता. इस तरह के लोग आमतौर पर समुद्री जहाज के चूहे होते हैं जो डूबते जहाज को छोड़ भाग खड़े होते हैं.

कठिनाई यह है कि भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत के बावजूद उस की असली ताकत बनना अभी भी सवाल खड़ा करता है. हां, अब क्षेत्रीय दलों का रुख बदलेगा क्योंकि उन्हें अब कांगे्रस से कोई आशा नहीं बची है. वे नरेंद्र मोदी को केंद्रीय सरकार बनाने में सहयोग देने में अब पहले से ज्यादा सक्रिय होंगे. अब तक क्षेत्रीय दल धर्म, जाति के कारण डरे रहते थे पर अब वे कांग्रेस का विरोध कर के सत्ता में रहना पसंद करेेंगे, चाहे कोई भी राज करे.

अगर कोई चीज आड़े आएगी तो वह आम आदमी पार्टी है. इस में कांगे्रसियों का हुजूम घुस सकता है और सारे देश में उस के खाली स्थानों को भर सकता है. आज ‘आप’ ब्रांड बहुत मजबूत है और ‘कोकाकोला की बौटल कहीं भी भरी जाए. रहती कोकाकोला ही है’ की तरह आप का लेबल कहीं भी किसी पर चिपका दो, वह सुधरा हुआ भ्रष्टाचार- विरोधी नेता माना जाएगा.

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