ग्राम मिलक रावली निवारी के 55 साल के किसान देवेंद्र सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद के कृषि वैज्ञानिकों से मधुमक्खी पालने के तरीकों के बारे में साल 2005 में जानकारी प्राप्त की और एक मधुमक्खी पालने का केंद्र शुरू किया. उस केद्र में पहले साल मधुमक्खी के 5 बक्से रखे. 1 बक्से की कीमत 2 हजार रुपए फ्रेम के साथ थी. उन्होंने सिर्फ 10 हजार रुपए में मधुमक्खी पालने का काम शुरू किया. इस काम से देवेंद्र सिंह को 15 हजार रुपए की कीमत का शहद प्राप्त हुआ और साल 2006 में उन्होंने 10 बक्से तैयार किए. उन 10 बक्सों से देवेंद्र सिंह ने 36 हजार रुपए का शहद बेचा. साल 2007 में उन्होंने 30 बक्से तैयार किए, जिन से उन को 72 हजार रुपए की आमदनी हुई थी.

मधुमक्खी पालने के काम से ज्यादा आमदनी देख कर उन की इस काम में रुचि बढ़ गई. साल 2008 में उन्होंने 60 बक्से तैयार किए, जिन से उन्हें 1 लाख, 36 हजार रुपए की अमादनी हुई थी. साल 2009 में उन्होंने 120 बक्से तैयार किए. उस से उन्हें 2 लाख 88 हजार रुपए की आमदनी हुई. देवेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2009 में 2 लाख 88 हजार रुपए की आमदनी होने के बाद उन के मधुमक्खी के बक्से चोरी हो गए थे. केवल 10 बक्से बचे थे. साल 2010 में देवेंद्र सिंह को काफी नुकसान हुआ, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने मधुमक्खी पालने के काम को फिर से शुरू किया. आज देवेंद्र सिंह के पास 150 बक्से तैयार हैं, जिन से उन्हें करीब 3 लाख रुपए की आमदनी होती है. देवेंद्र सिंह ने दावा किया है कि इस काम में कम खर्च से ज्यादा आमदनी होती है. यह काम बेरोजगारों के लिए बहुत ही फायदेमंद है.

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