वर्ल्ड वुमन्स डे के ठीक पहले ऐसी खबर का सामने आना काने समाज के अंधे होने की तरफ इशारा कर रही है. एक तरफ तो महिलाओं के लिए एक दिन मनाने की तैयारियां जोरों शोरों से चल रही हैं, और दूसरी तरफ नीम के तरह कड़वा एक सच भी है. विश्व के कई देशों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता है.

औरतों को आज भी बहुत लोग कमजोर समझते हैं और उनकी काबिलियत पर भी शक किया जाता है. एक शोध में पता चला है कि हमारे देश में एक ही काम के लिए पुरुषों के मुकाबले महिलाएं 25 प्रतिशत तक कम वेतन मिलता है. शोध की रिपोर्ट के अनुसार पुरुष जहां एक घंटे में औसतन 345.80 रुपये कमाते हैं वहीं महिलाओं की कमाई केवल 259.8 रुपये है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं के बीच का यह वेतन अंतर 2015 के अंतर से कम है.

एक किताब के अनुसार कई ठोस कदम उठाने के बावजूद 62.4 प्रतिशत महिलाएं मानती हैं कि उनके साथ काम करने वाले पुरुषों को प्रमोशन के अधिक अवसर मिलते हैं.

यह बात तो समझ के परे है कि पढ़े-लिखे लोगों के बीच भी यह अंतर क्यों है ? क्योंकि बुद्धिजीवियों का तो यही मानना है कि शिक्षा से इंसानों की सोच को दिशा मिलती है. तो फिर आईटी से लेकर बैंकिंग जैसे बड़े बड़े सेक्टर में भी महिलाओं और पुरुषों में भेद-भाव क्यों ? सोचने वाली बात है कि एक दिन के लिए महिलाओं को सम्मानों से लाद दिया जाए और साल के 364 दिन हर कदम पर असमान व्यवहार दिखाया जाए.

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