वर्तमान में कैसा भी परिवार हो, एकल या संयुक्त, मातापिता के मिल कर नौकरी अथवा व्यापार आदि करने के बाद भी बहुत कुछ ऐसा छूट जाता है, जो वे अपने बच्चों के लिए करना चाहते हैं, पर पैसों की कमी के कारण नहीं कर पाते.

किशोरावस्था में बच्चे बहुत से सपने देखते हैं. वे नई चीजें सीखना चाहते हैं, घूमना चाहते हैं. नएनए कपड़े खरीदना चाहते हैं, अपने फ्रैंड्स को बर्थडे पर कीमती उपहार देना चाहते हैं. वे अपना जन्मदिन किसी अच्छे रेस्तरां में मनाना चाहते हैं, अपने लिए मोबाइल, लैपटौप आदि खरीदना चाहते हैं. ऐसी अनगिनत अपनी छोटीछोटी इच्छाएं किशोरों को दबानी पड़ती हैं. चाहते हुए भी मातापिता उन की इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते, जिस का असर परिवार के माहौल पर पड़ता है.

ऐसे माहौल में पलने वाले किशोर अकसर हीनभावना के शिकार हो जाते हैं. परिणामस्वरूप उन के व्यक्तित्त्व का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता.

यदि किशोर चाहें तो अनेक ऐसे काम हैं जिन्हें वे अपनी पढ़ाई के साथसाथ करते हुए अपने शौक तो पूरे कर ही सकते हैं साथ ही परिवार के आर्थिक स्तर को भी ऊंचा उठा सकते हैं.

छोटे शहर की एक कालोनी में रहने वाला विकास 11वीं कक्षा का छात्र है. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में 20 हजार रुपए वेतन पाते हैं. उस की 2 छोटी बहनें हैं जो 10वीं और 8वीं में पढ़ रही हैं. मां भी बच्चों के स्कूल जाने के बाद घर का काम निबटा कर एक ब्यूटी पार्लर चला कर 5 हजार रुपए तक कमा लेती हैं, पर इतने पैसे से बच्चों की इच्छाएं पूरी नहीं हो पातीं.

विकास चाहता है कि वह भी अपने अन्य मित्रों की तरह परिवार के साथ फिल्म देखने जाए. जन्मदिन पर सब खाना खाने बाहर जाएं. अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उस ने अपने खाली समय में छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू किया. पहले तो उस के पास केवल तीसरी कक्षा के 2 बच्चे पढ़ने आए, पर उस की कम फीस तथा पढ़ाने के ढंग को देखते हुए आज वह शाम को 10-10 बच्चों को 2 बैच में पढ़ा कर 10हजार रुपए महीने तक कमा लेता है.

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