भारत की आजादी के समय के हालात ये थे कि गेहूं की रोटियां तो रिश्तेदारों के लिए ही बना करती थीं. बुजुर्गों की मानें तो गांवों में किसान सुबह शाम दलिया खाया करते थे. उन्हें रोटियां एक समय दोपहर में ही मिला करती थीं.

ज्यादातर लोग मोटे अनाज यानी ज्वार, बाजरा, मक्का या चना जैसी चीजें ही खाया करते थे. इतना ही नहीं जिस खेत में आज 30 क्विंटल अनाज पैदा होता है, उस में आजादी के समय 4 क्विंटल अनाज पैदा होता था.

देश में अब करीब 25 करोड़ टन अनाज हर साल पैदा होता है. यानी 1 आदमी के हिस्से में 1923 किलोग्राम अनाज सालाना आ रहा है. सरकार ने अनेक गोदाम बनवाए हैं, लेकिन भंडारण के लिए गोदामों की कमी की वजह से 38 फीसदी अनाज हर साल सड़ कर खराब हो जाता है. अन्न के जरूरत से ज्यादा भंडारण होने 

के बाद भी करीब 19 करोड़ लोग भूखे रहने के लिए मजबूर हैं. भंडारण और वितरण की व्यवस्था ठीक से हो तो कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए.

6 लाख गांवों के देश भारत में खेती की कहानी बड़ी लंबी है. इस क्षेत्र में विज्ञान ने 

खेती को नया रूप दिया है. जनसंख्या बढ़ने के साथ जोत छोटी हुई है, लेकिन कृषि पर निर्भरता बढ़ी है. यह स्थिति तब है, जबकि लोग खेती छोड़ रहे हैं. जिस हरित क्रांति के दम पर आज हम भरपेट रोटी खा रहे हैं, उस को भी 50 साल पूरे हो गए हैं. किसानों ने अपने पसीने से जमीन को सींच कर सब कुछ पैदा करने लायक बना दिया है. लेकिन 50 सालों में सारी तरक्की बेमानी सी लगने लगी है. उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल ने खेती की जमीन को खराब कर दिया है. 

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