आप और हम अक्सर सुनते हैं कि इस साल कम बारिश हुई है, जिसकी वजह से महंगाई बढ़ी है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि पिछले 15 वर्षों के दौरान देश में जब भी सूखे जैसे हालात रहे हैं उस वक्त महंगाई दर कम रही है. अगर सीधे शब्दों में कहें तो मानसून और महंगाई का गणित इतना सुलझा नहीं है, जितना हम समझते हैं.

ब्रोकरेज फर्म नोमुरा फाइनेंशियल एडवाजरी की रिपोर्ट के मुताबिक अगर इस साल देश में मानसून सामान्य रहता है तो भी महंगाई दर मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी. रिपोर्ट के अनुसार फूड इनफ्लेशन पर मानसून से ज्यादा असर सरकार की तरफ से तय किए जाने वाले मिनिमम सपोर्ट प्राइस और ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी की कीमतें डालती हैं.

सूखे जैसे हालात में कम थी महंगाई

नोमुरा ने पिछले 15 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें पाया कि महंगाई और मानसून का सीधा संबंध नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह साबित नहीं हुआ कि कमजोर मानसून से खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ जाते हैं और अच्छी बारिश होने पर महंगाई कम हो जाती है. उदाहरण के लिए वित्त वर्ष  2002, 2003 और 2005 में खराब मानसून के दौरान भी फूड इनफ्लेशन 5 फीसदी से भी कम थी.

वहीं, वित्त वर्ष 2007, 2009 और 2011, जब मानसून की अच्छी बारिश हुई थी, उस वक्त महंगाई 8 फीसदी से ज्यादा थी. नोमुरा की इकनॉमिस्ट सोनल वर्मा और नेहा सर्राफ ने स्पष्ट किया कि ‘ऐसी इकलौती कैटेगरी भी नहीं है, जो खराब या अच्छे मानसून साल में फूड प्राइस इनफ्लेशन को ऊपर या नीचे ले जाए. मानसून के प्रदर्शन से इतर अलग-अलग सालों में फूड प्रोडक्ट्स का प्रदर्शन असमान रहा है.

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