देश में बड़े-बड़े पदों पर बैठे नेता और नौकरशाह ये दावा करते आए हैं कि देश की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है. पर विश्वस्तर के सूचकांक तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं. देश के कुछ आर्थिक विशेषज्ञ इस तरह की रैंकिंग को निराधार मानते हैं. पर सच्चाई यही है कि विश्वस्तरीय रैकिंग में भारत का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है. हाल ही में एक और सूचकांक में तो भारत पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी पिछड़ गया है.

आर्थिक स्वतंत्रता के एक वार्षिक सूचकांक में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और यह 143 के स्थान पर रहा है. एक अमेरिकी शोध संस्थान ‘द हेरिटेज फाउंडेशन’ की ‘इंडेक्स ऑफ इकनॉमिक फ्रीडम’ में भारत की रैकिंग पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान समेत कई दक्षिण एशियाई देशों से पीछे है. इसका प्रमुख कारण भारत में बाजार को ध्यान में रखकर किए गए आर्थिक सुधारों से होने वाली प्रगति का ‘असमान’ होना बताया गया है.

इस कंजरवेटिव राजनीतिक विचारधारा के शोध समूह की रपट में भारत को ‘अधिकांशतया गैर-खुली’ अर्थव्यवस्था की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि भारत में बाजार आधारित सुधारों से हुई प्रगति ‘असमान’ रही है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य ने लोक उपक्रमों के माध्यम से कई क्षेत्रों में ‘अपनी एक व्यापक उपस्थिति बनाए रखी है’. इसके अलावा प्रतिबंधात्मक और भारी-भरकम नियामकीय वातावरण से उद्यमिता हतोत्साहित होती है. पिछले साल इस सूचकांक में भारत की रैंकिंग 123 थी.

इस सूचकांक में हांगकांग, सिंगापुर और न्यूजीलैंड शीर्ष पर रहे हैं. दक्षिण एशियाई देशों में भारत से नीचे अफगानिस्तान 163 और मालदीव 157वें स्थान पर हैं, जबकि इस सूचकांक में नेपाल का स्थान 125, श्रीलंका का 112, पाकिस्तान का 141, भूटान का 107 और बांग्लादेश का 128 है.

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