अपने चावलों के लिए मशहूर बिहार में चावलमिलों की धांधली पर रोक लगाने में सरकार बिल्कुल ही नाकाम रही है. पिछले 5 सालों से चावलमिल मालिकों के पास बिहार खाद्य निगम के 1342 करोड़ रुपए बकाया हैं और निगम उन्हें वसूलने के लिए कछुए की चाल ही चलता रहा है. जबतब बकाए की वसूली के लिए मुहिम शुरू की जाती है, मगर वह कभी भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है. पटना की 64 चावलमिलों पर 55.61, भोजपुर की 90 मिलों पर 72.05, बक्सर की 152 मिलों पर 101, कैमूर की 357 मिलों पर 220, रोहतास की 191 मिलों पर 111, नालंदा की 84 मिलों पर 55.34, गया की 49 मिलों पर 40, औरंगाबाद की 207 मिलों पर 62.15, वैशाली की 25 मिलों पर 23.66, मुजफ्फरपुर की 33 मिलों पर 66.51, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण की 153 मिलों पर 63, सीतामढ़ी की 52 मिलों पर 55.83, दरभंगा की 34 मिलों पर 39.83, शिवहर की 8 मिलों पर 17.78 और नवादा की 23 मिलों पर 20.48 करोड़ रुपए की रकम बकाया है. इस के अलावा अरवल, शेखपुरा, लखीसराय, मधुबनी, समस्तीपुर, सिवान, सारण व गोपालगंज आदि जिलों की सैकड़ों छोटीमोटी चावलमिलों पर भी करीब 0 करोड़ रुपए बकाया हैं.

बिहार महालेखाकार ने पिछले साल की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि धान को ले कर मिल वालों ने सरकार को 434 करोड़ रुपए का चूना लगाया है. इस से पहले साल 2011-12 में भी मिल वाले करोड़ों रुपए का धान दबा कर बैठ गए थे और उस के बाद के साल में 929 करोड़ रुपए के धान की हेराफेरी कर के सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाया था. इस के बाद भी सरकार ने मिलमालिकों के खिलाफ कार्यवाही करने में दिलचस्पी नहीं ली. बिहार राज्य खाद्य निगम के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2011-12 में जिन मिलों पर धांधली का आरोप लगा था, उन्हीं मिलों को साल 2012-13 में भी करोड़ों रुपए के धान दे दिए गए.

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