भारतीय निवेश बाजार की एक विडंबना यह है कि आम निवेशक अभी तक शेयर बाजार व म्यूचुअल फंड के बीच अंतर को नहीं समझ पाया है. निवेशकों को बैंक एफडी, सरकारी प्रतिभूतियों, एनएससी जैसे पारंपरिक निवेश के बारे में तो पता होता है, लेकिन उन्हें स्थायी रिटर्न की सुविधा देने वाले डेट फंड के बारे में पता नहीं होता.

निवेशकों को यह भी नहीं पता होता कि स्थायी रिटर्न वाले डेट फंड में निवेश करके ही उन्हें फायदा देते हैं. वैसे ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश में म्यूचुअल फंडों का 72 फीसद असेट्स अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) डेट फंड में निवेशित होता है. इससे पता चलता है कि देश के म्यूचुअल फंड बाजार में डेट फंड का खासा योगदान है.

निवेशकों के लिए कितना महत्वपूर्ण है डेट फंड?

निवेशकों के बीच भले ही खास जागरूकता अभी तक नहीं फैल पाई हो, लेकिन इससे इसका महत्व कम नहीं होता है. हां, ग्राहकों को नुकसान जरूर होता है, क्योंकि वे रिस्क मैनेजमेंट रिटर्न, आसान लिक्विडिटी व टैक्स में लाभ जैसे फायदे से वंचित रह जाते हैं. जहां तक निवेशकों के मन में स्थायी आय वाले डेट फंड की आशंका का सवाल है तो उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि इस फंड का एक बड़ा हिस्सा बैंकों की स्थायी जमा योजनाओं, कॉरपोरेट प्रतिभूतियों वगैरह में निवेश होता है, जिनसे आम निवेशक भलीभांति परिचित होता है.

इस लिहाज से ये फंड और कुछ नहीं विभिन्न प्रतिभूतियों में निवेश करने का एक सुरक्षित तरीका हैं. इन फंडों के जरिये निवेशक यह तय कर सकता है कि वह किस मुकाम तक जोखिम लेने की क्षमता रखता है. साथ ही, अपनी मर्जी की अवधि के मुताबिक भी वह फंड का चयन कर सकता है. ग्राहक लिक्विड फंड, लिक्विड पल्स फंड, शार्ट टर्म इनकम फंड, इनकम फंड आदि डेट फंडों का चुनाव कर अपने लक्ष्य के मुताबिक निवेश कर सकता है.

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